Sunday, November 3, 2024
देश

“अंधों का हाथी” और कोरोना

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राजनीति (Politics) और नेताओं पर व्यंग करते शरद जोशी (Sharad Joshi) के इस नाटक में दिखाया गया है कि नेता “अंधों की तरह” होते हैं. समस्याओं (Problems) से जूझ रही जनता और समस्याओं की गंभीर जमीनी हकीकत से इन्हें कोई लेना-देना नहीं होता.

हिन्दी साहित्य के ख्यातिनाम व्यंगकार (Satirist) शरद जोशी (Sharad Joshi) की बहुचर्चित व्यंग रचना पर आधारित नाटक है “अंधों का हाथी” (The blind men and an Elephant). कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के इस काल में यह नाटक बरबस ही याद आ गया. नाटक में एक सूत्रधार जनता के रूप में मंच पर आता है. साथ में 5 नेताओं को अंधों और हाथी को देश की विकराल हो चुकी समस्याओं का प्रतीक बनाकर मंच पर लाया जाता है. नेताओं (अंधों) को हाथी के पास खड़ा कर पहचानने के लिए कहा जाता है. कोई नेता हाथी की पीठ को दीवार, कोई कान को सूप तो कोई पूंछ को रस्सी या अजगर बताता है. राजनेताओं (Politicians) के बीच समस्या को पहचानने, हल करने की बजाय उससे लोकप्रियता हासिल करने और जानबूझकर जनता को गुमराह करने की होड़ मच जाती है. अंत में समस्या (Problem) को सामने लाने वाली जनता (सूत्रधार) को ही मार दिया जाता है.

राजनीति (Politics) और नेताओं पर व्यंग करते शरदजी के इस नाटक में दिखाया गया है कि नेता “अंधों की तरह” होते हैं. समस्याओं (Problems) से जूझ रही जनता और समस्याओं की गंभीर जमीनी हकीकत से इन्हें कोई लेना-देना नहीं होता. कमोवेश दिन-ब-दिन व्यापक और विकराल होती जा रही कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) को लेकर देश की राजनीति और तंत्र दोनों की भूमिका ऐसी ही दिखाई दे रही है, जैसा अंधों का हाथी नाटक में प्रदर्शित किया गया है. किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है, रोज लॉकडाउन, अनलॉक, नई गाइडलाइंस (New Guidelines) के फरमान आ रहे हैं, अपने सुविधा के हिसाब से महामारी के टेस्टिंग, रिकवरी और मौतों के आंकड़े बताए जा रहे हैं, जो सच्चाई से परे हैं.

महामारी से बचने के लिए मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग का फार्मूला सुझाने वाले, उपदेश देने वाले सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुक्मरान, राजनीतिक टोलों में बंटे नेता दो गज की दूरी बनाए रखने की नसीहतों की धज्जियां खुद उड़ा रहे हैं. मंदिरों में ताले हैं, धार्मिक, सामाजिक समारोहों पर तो बंदिशें हैं, लेकिन नेताओं की रैलियां, सभाएं, स्वागत समारोह बेरोक-टोक जारी है. नेता आपसी दोषारोपण और सियासी षडयंत्रों और अपनी छवि चमकाने के प्रपंची खेल में लगे हैं. आपाधापी के बीच तंत्र को जो सूझ पड़ा रहा है, वो फैसले कर रहा है. सवाल है ऐसे में लॉकडाउन क्या कर लेगा?

खुद चूके चौहान

मप्र में कोरोना के तेजी से बढ़ने और गंभीर होते हालातों का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि तमाम प्रोटोकाल्स, गाइडलाइन्स के पालन करने और स्वास्थ्य के स्तर पर कई चक्रीय सुरक्षा से घिरे रहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तमाम सावधानियों के बावजूद खुद कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. उन्होंने खुद सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की तरह अपने कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी ट्वीटर पर दी और संपर्क में आने वाले लोगों से कोरोना टेस्ट कराने की अपील करते हुए भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती हो गए. शिवराज की कैबिनेट में मंत्री अरविन्द भदौरिया खुद भी इसी प्रकार से अपने कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी देने के बाद और संपर्क में आए लोगों से टेस्टिंग की अपील करते हुए इसी अस्पताल में भर्ती हैं. राज्य में शिवराज और भदौरिया के अलावा कई नेता, विधायक कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं. इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, इनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री विक्रम वर्मा, विधायक नीना वर्मा, दिव्यराज सिंह, लखन घरघोरिया, कुणाल चौधरी, ओमप्रकाश सकलेचा और टीकमगढ़ विधायक राकेश शामिल हैं.

अब राज्य में शिवराज के बेहतर और शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ महाकाल, सिद्धि विनायक गणेश मंदिर समेत कई जगहों पर यज्ञ, पूजा, अर्चना, हवन, कीर्तन शुरू हो गए हैं. शिवराज हों या कोई अन्य नेता हो, जाहिर है इन सबसे सोशल डिस्टेंसिंग में कहीं न कहीं चूक हुई. नेताओं का ही जनता अनुसरण करती है, देखने में ये आया है कि नेता ही सबसे ज्यादा कोरोना महामारी को रोकने के लिए सबसे जरूरी बात सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं. 24 जुलाई को भोपाल में दस दिन के लॉकडाउन का ऐलान करते समय गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र खुद मास्क नहीं पहने हुए थे और उनसे लगभग सटकर कई नेता और दीगर संबंधित व करीब लोग खड़े हुए थे. ऐसे में दूसरों से क्या अपेक्षा की जाए?

मप्र पर कसता कोरोना का शिकंजाजरा सोचिए कि मप्र और खासतौर से भोपाल में कोरोना किस तेजी से फैल रहा है कि तीन लॉकडाउन झेलने के बाद अनलॉकडाउन के दो फेस पूरे होने से पहले ही भोपाल की जनता को फिर शनिवार 25 जुलाई से 10 दिन के लिए लॉकडाउन में जकड़ दिया गया. रोज सुबह आंख खोलने पर कोरोना संक्रमितों के आंकड़े पिछले दिन का रिकार्ड तोड़ते दिखते हैं. भोपाल में पिछले एक हफ्ते से भी ज्यादा समय से सौ से लेकर 200 मरीज रोज मिल रहे हैं. शुक्रवार को यह आंकड़ा 215 मरीजों का था, तो शनिवार 25 जुलाई को बढ़कर 221 नए मरीज मिलने का हो गया. पूरे प्रदेश में रविवार सुबह तक 24 घंटे में 716 कोरोना के नए मरीज मिले. राज्य में कुल संक्रमितों की संख्या 27 ह्जार पार कर गई है और 800 से ज्यादा मरीज मर चुके हैं.

इसलिए याद आया “अंधों का हाथी”
वास्तव में नेताओं और तंत्र द्वारा जो दावे जनता के सामने परोसे जा रहे हैं, वह सच नहीं है. दावा किया जा रहा है कि कोरोना के मरीजों की टेस्टिंग तेजी से की जा रही है, जबकि वास्तव में टेस्टिंग नहीं के बराबर हो रही है. भोपाल की ही बात करें तो 52 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में कोविड क्लीनिक बनाए गए हैं. इन्हीं में से एक स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी सेवाएं दे रही, डॉ. पूनम चंदानी के मुताबिक पहले हमें रोज 20 टेस्ट करने के लिए कहा गया था, अब इसे कम कर केवल 5 टेस्टिंग तक सीमित कर दिया गया है. जरा बताइए, 30 लाख से ज्यादा आबादी वाले भोपाल में 52 कोविड केन्द्रों में रोज 5 लोगों की टेस्टिंग क्या मायने रखती है?

कहा जा सकता है कि टेस्टिंग कम कर कोरोना के वास्तविक मरीजों की संख्या छुपाई जा रही है. इस तरह से यह कोरोना बम आज नहीं तो कल फूटेगा. आज किसी की बारी है, तो कल की और की भी होगी, उसके बाद आपकी भी हो सकती है. दूसरा सवाल यह है जब देश के साथ प्रदेश में 50 दिन का लॉकडाउन लगा, और अनलॉकडाउन के दो फेस गुजरने को है, तो कोरोना के तेजी से हो रहे विस्फोट और हालातों की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे दवा, टेस्टिंग, अस्पतालों में पलंग के पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किए गए? राजधानी भोपाल में ही देखें तो कोरोना के कहर के चलते स्थिति काबू से बाहर हो गई है. कोरोना के लिए तय अस्पतालों में 1400 मरीजों के मुकाबले केवल 1300 बिस्तर ही है. भोपाल एम्स, चिरायु और हमीदिया अस्पताल में बिस्तर खाली नहीं हैं. भोपाल के सीएचएमओ डॉ. प्रभाकर तिवारी के अनुसार शहर में तीन अस्पतालों को रिजर्व किया गया था, अब स्थिति को देखते हुए पीपुल्स और एलएन अस्पताल जैसे कुछ और अस्पतालों से एमओयू साइन किया जा रहा है, जहां कोरोना के मरीजों को रखा जा सकेगा. कोविड के लिए पहले से चयनित अस्पतालों में 500 बिस्तर और बढ़ाए जा रहे हैं.

न जान बच रही, न जहान
जब 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 4 घंटों के नोटिस पर राज्यों से कोई सलाह किए बगैर 24 मार्च को पहला 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया था, तब उन्होंने कहा था कि जान है तो जहान है, दूसरे लॉकडाउन से पहले उन्होंने कुछ रियायतों और सोशल दो गज की दूरी जरूरी की दोबारा हिदायत के साथ जान भी, जहान भी का नारा दिया था. 30 जून तक तीसरा लॉकडाउन रहा. उसके बाद एक जुलाई से शुरू हुए अनलॉकडाउन के दो फेज गुजरने को हैं. जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटी, तो कोरोना फिर तेजी से फैलने लगा. अब सारी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी गई है. मरीजों की संख्या बढ़ने से घबराए राज्यों को फिर से लॉकडाउन की ओर लौटना पड़ रहा है.

मौजूदा वक्त में देश की करीब आधी आबादी लॉकडाउन झेल रही है. देश के 10 राज्य लॉकडाउन की गिरफ्त में हैं. बिहार, पश्चिम बंगाल में पूरी तरह से लॉकडाउन है. पंजाब, उत्तर प्रदेश में साप्ताहिक और मध्यप्रदेश में दो दिन शनिवार, रविवार को लॉकडाउन है. बढ़ते संक्रमण को देश भोपाल में तो 10 दिन का लॉकडाउन शनिवार से शुरू हो चुका है. देश में रविवार याने 26 जुलाई को पहली बार कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा एक दिन में 50 हजार पार कर गया है. देश में कोरोना के अब तक 13 लाख 89 हजार मामले सामने आ चुके हैं और पौने 5 लाख के करीब मरीजों का इलाज चल रहा है.

हालात चिंताजनक, लॉकडाउन, अनलॉक बेमानी
देश की स्थिति वाकई चिंताजनक है. गौरतलब है कि पहले भी बार-बार कहा जा रहा था कि अभी तो कोरोना बड़े-बड़े शहरों में फैला है, लेकिन जब छोटे शहरों गांवों में फैलेगा, तो फिर वैसी ही लॉकडाउन की मजबूरी हो जाएगी, क्योंकि किसी के पास कोई ठोस फार्मूला है ही नहीं. वैसे देखा जाए तो अब लॉकडाउन और अनलॉक का कोई मतलब रह नहीं गया है, अब हर रोज नए नियम बनते हैं, रोज स्थानीय स्तर पर प्रशासन बता रहा कि कहां शनिवार, रविवार को लॉकडाउन है, कहां केवल रविवार को. लोगों में गाइडलाइंस को लेकर संभ्रम की स्थिति है.

जुमलों से परे हक़ीक़त
वास्तव में लॉकडाउन और अनलॉक जैसे जुमलों से परे हकीकत यह है कि अब कोरोना फैल रहा है. पहले बड़े शहरों में फैल रहा था, अब छोटे शहरों, गांवों में फैल रहा है. बड़े शहरों में भी कोरोना थमा नहीं है. एक भी बड़े शहर में ग्रोथ रूकी नहीं है. देश का शायद ही कोई जिला ऐसा बचा है, जहां कोरोना नहीं है. इसलिए जिलाप्रशासन, और राज्य सरकारें अपने अपने स्तर पर कोरोना को काबू करने के लिए जो समझ में आ रहा है, वह कर रहे हैं. कोरोना संक्रमितों का पता लगाना, लोगों की टेस्टिंग और इलाज ही कोरोना पर लगाम का कारगर तरीका हो सकता है. अकेले लॉकडाउन से कुछ नहीं होने वाला.

सरकार के दावों पर भरोसा नहीं
सरकार के दावों पर खुद सरकार के लोग भरोसा नहीं कर रहे.स्वास्थ्य मंत्रालय दावा कर रहा है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमितों के सवा लाख केस है. आईसीएमआर की जीरो स्टडी कहती है दिल्ली में 46 लाख कोरोना संक्रमित हैं. सही क्या है, सरकार को क्या करना है, उसे समझ में नहीं आ रहा. स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से आंकड़ों को लेकर बहुत ही सिलेक्टिव तरीके से दिखाकर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि देश ने कोरोना को काबू करने में काफी सफलता हासिल कर ली है, जो सही तस्वीर नहीं है. सरकार का कहना है कि कोरोना के संक्रमित मामलों में दुनिया में रिकवरी रेट 61 फीसदी है, जबकि भारत में कहीं बेहतर 63 फीसदी से ऊपर है. कोरोना के गंभीर मामलों की बात करें तो दुनिया में गंभीर मामलों की मामलों की दर 1 फीसदी तो हमारे भारत में 2 फीसदी है. यह तस्वीर तब है, जब हमारे यहां टेस्टिंग पूरी नहीं हो रही. हम अमेरिका, स्पेन, इटली, ब्राजील, की बात कर रहे हैं, जहां आमतौर पर 10 लाख लोगों पर 1 से 2 लाख लोगों की टेस्टिंग हुई है, हमारे यहां 10 लाख लोगों पर 10 हजार की टेस्टिंग हो रही है. कहां दो लाख टेस्टिंग, कहां 10 हजार. आप खुद ही वास्तविकता का अंदाजा लगाइए न.

कुछ चेतावनियां एक नजर में
-वैक्सीन कब आएगी, इसका अभी कोई पता नहीं है. सबसे विश्वसनीय हेल्थ जर्नल लांसेट के निदेशक जे पोलार्ड ने कहा है कि भारत में 2021 तक सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ सकते हैं. जब तक हम कोरोना से लड़ने के लिए इम्यूनिटी विकसित करेंगे, तब तक बहुत सारे लोग मारे जा चुके होंगे.

-विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डा. सौम्या स्वामीनाथन के मुताबिक कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में अभी लंबा वक्त लगेगा और वैक्सीन आने के बाद ही इसकी रोकथाम में तेजी आएगी.

-इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के चेयरमैन डा. बीके यादव के मुताबिक देश में अब कोरोना कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया है. रोज करीब 50 हजार मामले सामने आने लगे हैं. सबसे बुरी और खतरनाक बात यह है कि अब कोरोना गांवों में तेजी से अपने पैर पसार रहा है.

-पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रेसिडेंट श्रीनाथ रेड्डी ने चेताया है कि 15 सितंबर के आसपास कोरोना महामारी अपने चरम पर हो सकती है. सबसे बड़ा काम इसे गांवों तक पहुंचने से रोकना है, क्योंकि देश की दो तिहाई आबादी गांवों में रहती है. (ये लेखक के निजी विचार हैं)सुनील कुमार गुप्तावरिष्ठ पत्रकार