ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
सफ़र जीवन का गर तुमको सुहाना चाहिए था
कोई साथी, कोई हमदम बनाना चाहिए था
ख़ुशी से हाथ जीवन में मिलाना चाहिए था
उमंगों की पतंगों को उड़ाना चाहिए था
दग़ाबाज़ी पे अब क्यों बेवफ़ा की रो रहे हो
यकीं करने से पहले आज़माना चाहिए था
हमारी मुफ़लिसी ने सौ दिए कारण, उसे तो
फ़क़त दिल तोड़ने का इक बहाना चाहिए था
बढ़ाया हौसला तुमने सितमगर का है लोगो
न यूँ सर ज़ुल्म के आगे झुकाना चाहिए था
अदावत की रखी चिंगारियाँ क्यों दिल के अंदर
अगर रिश्ता सभी से दोस्ताना चाहिए था
समझकर ही तुम्हें दुश्वारियांँ मंज़िल की हीरा
क़दम राह ए मुहब्बत पर बढ़ाना चाहिए था