Tuesday, September 10, 2024
कविता

तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पे यक़ीन कर

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शंकर शैलेन्द्र

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

ये सुबह-ओ-शाम के रँगे हुए गगन को चूमकर

तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर!

तू आ मेरा सिंगार कर तू आ मुझे हसीन कर।

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

ये ग़म के और चार दिन सितम के और चार दिन

ये दिन भी जाएँगे गुज़र गुज़र गए हज़ार दिन

कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नज़र।

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

हमारे कारवाँ का मंज़िलों को इंतज़ार है

ये आँधियों की बिजलियों की पीठ पर सवार है

जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर।

हज़ार रूप धर के आई रात तेरे द्वार पर

मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर

नई सुबह के संग सदा मिली तुझे नई उमर।

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।