पथ किसका देखा करता है
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हीरालाल यादव “हीरा “
आँखों में उम्मीद लिए पथ किसका देखा करता है
किसकी खातिर पागल हर पल दामन गीला करता है
मिल जाएगा इक दिन जिसकी ख़्वाहिश दिल में है तेरे
क्यों ख़ुद को तू आख़िर ऐसे ख़्वाब दिखाया करता है
धरता है इलज़ाम समझ लो जो भी इसाँ औरों पर
दुनिया में किरदार वो अपना ख़ुद ही मैला करता है
तकलीफ़ें हों लाख मगर मुस्कान सजा कर होठों पर
ख़ुश रहने का ढोंग ज़माने में हर बंदा करता है
दंगे करवाना, लड़वाना खेल सियासी हैं सारे
वक़्त भला क्यों अपना इन बातों में ज़ाया करता है
चाँद-सितारों को पाने की इच्छा रख कर जीवन में
हीरा दुख से ख़ुद हर इंसाँ रिश्ता जोड़ा करता है