Thursday, February 20, 2025
देश

राज्य और रेलवे से फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को तत्काल आपातकालीन कोटा में उनके घर पहुंचाने को कहा,तेलंगाना हाईकोर्ट

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तेलंगाना हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार और रेलवे से फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को उनके घर वापस भेजने के लिए आपातकाल कोटा के तहत तत्काल क़दम उठाने को कहा है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के अनुसार, मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने दक्षिण मध्य रेलवे के वक़ील पुष्पेंदर कौर की दलील सुनी जिन्होंने नियमित ट्रेनों में आपातकालीन कोटा के तहत अतिरिक्त डिब्बे और पर्याप्त बर्थ उपलब्ध नहीं करा पाने की बात कही। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, “आप ग़रीबों और वंचितों के प्रति पर्याप्त रूप से संवेदनशील कब होंगे और उन पर भी वही नियम लागू कब करेंगे? जब आप शादी में जाने वाले समूहों के लिए विशेष डिब्बे दे सकते हैं तो आप ग़रीब प्रवासी श्रमिकों के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते? और वह भी तब जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद इसका आदेश दिया है।” सोमवार को कोर्ट के आदेश के अनुसार मंडल रेल प्रबंधक, सिकंदराबाद मंगलवार को कोर्ट में मौजूद थे, जिन्होंने बताया कि आपातकालीन कोटा के तहत 34 बर्थ उपलब्ध हैं। इसके अलावा 20 बर्थ AC-III में उपलब्ध होंगे। उनके अनुसार, अगर राज्य सरकार मंडल रेल प्रबंधक के ऑफ़िस से संपर्क करती है तो बिहार के 49 प्रवासी श्रमिकों को ले जाने का प्रबंध तत्काल किया जा सकता है, जिस पर पीठ ने ग़ौर किया। महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार एक व्यक्ति को मंडल रेल प्रबंधक के ऑफ़िस में नियुक्त करेगी जो इस बारे में आवश्यक आग्रह करेगा ताकि फंसे हुए सभी 49 प्रवासी श्रमिकों को पटना भेजा जा सके। अदालत ने कहा कि अगर फंसे अन्य प्रवासी श्रमिक भी अपने घर वापस जाना चाहते हैं तो उस स्थिति के लिए राज्य सरकार और दक्षिण मध्य रेलवे के बीच यह व्यवथा क़ायम रहनी चाहिए। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने हर ट्रेन में श्रमिकों को ले जाने के लिए 2-3 डिब्बे लगाने को कहा था। गत शुक्रवार को रेलवे की ओर से पीठ को बताया गया कि वह नियमित चलनेवाली ट्रेनों में कुछ डिब्बों को श्रमिक डिब्बे के रूप में नहीं चिन्हित करना चाहती है। चूंकी नियमित ट्रेन अक्टूबर तक पूरी तरह भरे हुए हैं, रेलवे के लिए उनका टिकट रद्द करना और उनकी जगह श्रमिकों को ले जाना संभव नहीं होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड के लिए ट्रेन चलाने के निर्देश के बारे में रेलवे ने कहा कि हो सकता है कि इन जगहों पर जाने के लिए अब पर्याप्त संख्या में श्रमिक नहीं बचे हों और ट्रेन चलाने से राज्यों पर खर्च का अनुचित बोझ पड़ेगा। अदालत को बताया गया कि एक श्रमिक ट्रेन को चलाने पर ₹10 लाख का खर्च आता है। इसे देखते हुए पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह दक्षिण मध्य रेलवे से संपर्क कर यह पता करें कि कम डिब्बेवाले श्रमिक ट्रेनों से अटके पड़े श्रमिकों को भेज सकते हैं या नहीं। राज्य सरकार से यह भी कहा गया कि वह रेलवे से प्रो राटा के आधार पर भुगतान करने के बारे में बात कर सकता है।