Monday, February 17, 2025
कविता

है दहेज अभिशाप देखिए , मैं एक चित्र दिखाता हूं ।

Top Banner

                                    रवि यादव

इस दहेज दानव के दुनियां भर में अगणित किस्से हैं

जहां कुरीति चरम चढ़ी हम उस समाज के हिस्से हैं ।।

अगर आज तक यह दहेज मुखमंडल जो फैलाया है ।

यह मुखमंडल फैलाने की हिम्मत हमसे ही पाया है ।।

अगर नहीं हिम्मत इसको मिलती, दम तोड़ दिया होता ।

न गरीब ये नरता का ही दामन छोड़ दिया होता ।।

मगर एक दानव मानव के मर्यादा से खेल रहा ।

एक तरफ है सारी दुनिया यह एक तरफ अकेल रहा ।।

जीत रहा है ये हमसे इस बात से थोड़ी शर्म करो ।

चार दिनों का जीवन इसका बस निष्ठा से कर्म करो ।।

लोभ की चिंगारी के कारण सुलग रही है गली-गली।

यह दहेज ही बनी होलिका जिसमें लाखों दुल्हन जली ।।

है दहेज अभिशाप देखिए मैं एक चित्र दिखाता हूं ।

अपने शब्दों के जरिए निर्दिष्ट चरित्र दिखाता हूं ।।

यह दहेज फांसी का फंदा,गला दबोचे दुल्हन का ।

यह दहेज है नीच भेड़िया जिस्म जो नोचे दुल्हन का ।।

यह दहेज ही दुर्बुद्धि है अहित जो सोचे दुल्हन का ।

यह दहेज कातिल बन जाता है बेसोचे दुल्हन का ।।

यह दहेज ही पहला कारण बेटी न जन्माने का ।

बाप को साहस देता बेटी का ही गला दबाने का ।।

यह दहेज ही वजह है बेटे और बेटी में अंतर का ।

हृदय विदारक चीरहरण का, शर्मनाक हर मंजर का ।।

यह दहेज ही पुश्तैनी घर को गिरवी रखवाता है ।

यह दहेज ही चौखट से बारात तलक लौटाता है ।।

जिसके घर से डोली बिन दुल्हन के लौटा करती है ।

उस घर के उस बेटी की दुर्भेद आत्मा मरती है ।।

फिर लाल चुनरिया कफ़न लगे यह डोली अर्थी लगती है ।

तब लगे चिता यह हवन कुंड जिसमें हर खुशी सुलगती है ।।

गंगा-जमुना से कजरारे ये युगल नयन बन जाते हैं ।

चूल्हे ठंडे रहते हफ्तों, अन्न,जल दुश्मन बन जाते हैं ।।

है कमी शब्द की पास मेरे इतनी गुनाह यह करता है ।

अनगिनत बेटियों का कातिल क्या कारण जो ना मरता है।।

उन्नति या फिर अवनति जो भी सबके हैं जिम्मेदार हम्ही ।

इस कुटिल असुर के काल हम्ही इसके हैं पालनहार हम्ही ।।

इस मानवता के शत्रु के आगे अब मस्तक मत टेको ।

जितने जल्दी हो सके इसे जड़ से उखाड़ करके फेंको ।।

बहनों की खातिर भाई का सर्वोत्तम प्यार यही अबकी ।

अबकी के रक्षाबंधन का असली उपहार यही अबकी ।।