है दहेज अभिशाप देखिए , मैं एक चित्र दिखाता हूं ।
रवि यादव
इस दहेज दानव के दुनियां भर में अगणित किस्से हैं ।
जहां कुरीति चरम चढ़ी हम उस समाज के हिस्से हैं ।।
अगर आज तक यह दहेज मुखमंडल जो फैलाया है ।
यह मुखमंडल फैलाने की हिम्मत हमसे ही पाया है ।।
अगर नहीं हिम्मत इसको मिलती, दम तोड़ दिया होता ।
न गरीब ये नरता का ही दामन छोड़ दिया होता ।।
मगर एक दानव मानव के मर्यादा से खेल रहा ।
एक तरफ है सारी दुनिया यह एक तरफ अकेल रहा ।।
जीत रहा है ये हमसे इस बात से थोड़ी शर्म करो ।
चार दिनों का जीवन इसका बस निष्ठा से कर्म करो ।।
लोभ की चिंगारी के कारण सुलग रही है गली-गली।
यह दहेज ही बनी होलिका जिसमें लाखों दुल्हन जली ।।
है दहेज अभिशाप देखिए मैं एक चित्र दिखाता हूं ।
अपने शब्दों के जरिए निर्दिष्ट चरित्र दिखाता हूं ।।
यह दहेज फांसी का फंदा,गला दबोचे दुल्हन का ।
यह दहेज है नीच भेड़िया जिस्म जो नोचे दुल्हन का ।।
यह दहेज ही दुर्बुद्धि है अहित जो सोचे दुल्हन का ।
यह दहेज कातिल बन जाता है बेसोचे दुल्हन का ।।
यह दहेज ही पहला कारण बेटी न जन्माने का ।
बाप को साहस देता बेटी का ही गला दबाने का ।।
यह दहेज ही वजह है बेटे और बेटी में अंतर का ।
हृदय विदारक चीरहरण का, शर्मनाक हर मंजर का ।।
यह दहेज ही पुश्तैनी घर को गिरवी रखवाता है ।
यह दहेज ही चौखट से बारात तलक लौटाता है ।।
जिसके घर से डोली बिन दुल्हन के लौटा करती है ।
उस घर के उस बेटी की दुर्भेद आत्मा मरती है ।।
फिर लाल चुनरिया कफ़न लगे यह डोली अर्थी लगती है ।
तब लगे चिता यह हवन कुंड जिसमें हर खुशी सुलगती है ।।
गंगा-जमुना से कजरारे ये युगल नयन बन जाते हैं ।
चूल्हे ठंडे रहते हफ्तों, अन्न,जल दुश्मन बन जाते हैं ।।
है कमी शब्द की पास मेरे इतनी गुनाह यह करता है ।
अनगिनत बेटियों का कातिल क्या कारण जो ना मरता है।।
उन्नति या फिर अवनति जो भी सबके हैं जिम्मेदार हम्ही ।
इस कुटिल असुर के काल हम्ही इसके हैं पालनहार हम्ही ।।
इस मानवता के शत्रु के आगे अब मस्तक मत टेको ।
जितने जल्दी हो सके इसे जड़ से उखाड़ करके फेंको ।।
बहनों की खातिर भाई का सर्वोत्तम प्यार यही अबकी ।
अबकी के रक्षाबंधन का असली उपहार यही अबकी ।।