अलगाव वादी नेता शब्बीर अहमद को मिली राहत
श्रीनगर, (जम्मू और कश्मीर): कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग मामले में वैधानिक जमानत दे दी है. 2017 में गिरफ्तार किए गए शाह ने अपराध के लिए संभावित अधिकतम सजा का आधा से अधिक हिस्सा काट लिया है. अदालत की जमानत शर्तों में 1 लाख रुपये का निजी मुचलका और इतनी ही राशि का जमानती बांड शामिल है, साथ ही अदालत की अनुमति के बिना देश छोड़ने पर प्रतिबंध भी है .
जमानत के बावजूद, शाह अन्य लंबित मामलों के कारण हिरासत में ही रहेंगे. अदालत ने विजय मदनलाल चौधरी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें शाह की छह साल और 10 महीने की लंबी हिरासत को नोट किया गया, जो निर्धारित सात साल की अधिकतम सजा के आधे से अधिक है.
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि शाह पर अन्य मामलों में गंभीर आरोप हैं, लेकिन बिना दोषसिद्धि के विचाराधीन होना वैधानिक जमानत से इनकार करने के लिए अपर्याप्त आधार है. शाह के 24 जुलाई, 2024 से पहले रिहा होने की संभावना नहीं है, जब इस मामले में सात साल की अधिकतम सजा अवधि समाप्त हो रही है।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने शस्त्र अधिनियम के अंतर्गत एक को छोड़कर सभी मामलों में शाह के सह-आरोपी मोहम्मद असलम वानी को बरी किए जाने का भी उल्लेख किया. धारा 436ए सीआरपीसी के अंतर्गत दायर शाह की जमानत याचिका में तर्क दिया गया कि वह पीएमएलए के अंतर्गत मनी लॉन्ड्रिंग के लिए संभावित सजा का आधा से अधिक हिस्सा पहले ही काट चुका है. शाह के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि वह जुलाई 2017 से हिरासत में है और जुलाई 2024 तक अपनी संभावित अधिकतम कारावास अवधि पूरी कर लेगा.
उन्होंने तर्क दिया कि कानूनी मिसालों से पता चलता है कि शाह को जमानत पात्रता के लिए धारा 45 पीएमएलए के अंतर्गत कठोर शर्तों के अधीन नहीं होना चाहिए. प्रवर्तन निदेशालय के विशेष लोक अभियोजक ने शाह के खिलाफ आरोपों की गंभीरता का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया, जिसमें आतंकवाद के वित्तपोषण में संलिप्तता और अपराध से आय अर्जित करना शामिल है. अभियोजक ने शाह के कथित पिछले आचरण को देखते हुए जमानत पर रिहा होने पर फरार होने के जोखिम के बारे में चिंता व्यक्त की.