आवासीय प्रमाण पत्र नागरिकता का प्रमाण नहीं’: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आवासीय प्रमाण पत्र (Residential Certificate) नागरिकता का प्रमाण नहीं है क्योंकि इसे किसी भी निवासी द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। आगे कहा कि कोई भारतीय या विदेशी व्यक्ति किसी विशेष स्थान पर रह रहा है तो वह व्यक्ति आसानी से आवासीय प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकता है। न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की एकल पीठ ने यह टिप्पणी खदीजा बेगम की जमानत याचिका खारिज करते हुए की। दरअसल खदीजा बेगम के खिलाफ इस साल जनवरी में विदेशी अधिनियम (फॉरेनर्स एक्ट),1946 की धारा 14 और धारा 14C के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14 अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान करता है जैसे जब कोई व्यक्ति उस अवधि से अधिक समय तक भारत में रहता है जितने समय के लिए उसे वीजा जारी किया गया है या यदि वैध वीजा की शर्तों का उल्लंघन करने वाला कोई भी कार्य किया जाता है। इस तरह के अवैध कार्य करने पर सजा का प्रावधान है। दूसरी ओर, अधिनियम की धारा 14C के तहत धारा 14, धारा 14A और धारा 14B के तहत प्रावधानों के उल्लंघन करने पर दंडनीय अपराध करने पर दंड का प्रावधान है।
23 मार्च 2021 के पुलिस सब इंस्पेक्टर द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसमें कहा गया था कि खदीजा ने अपनी भारतीय नागरिकता का दावा करने के लिए पहली बार उच्च न्यायालय के समक्ष दो दस्तावेज यानी आधार कार्ड और वोटर आईडी प्रस्तुत किया था। हालांकि यह याचिकाकर्ता का मामला था कि सब-इंस्पेक्टर द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार यह देखा जा सकता है कि दस्तावेज पहले मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए गए थे, जिसमें उक्त मजिस्ट्रेट ने जांच अधिकारी को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया था।याचिकाकर्ता द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि जांच अधिकारी ने उक्त रिपोर्ट प्रस्तुत किए बिना मामले में आरोप पत्र दायर किया। जिसके बाद मजिस्ट्रेट ने उसकी जमानत याचिका को सीआरपीसी की धारा 437 के तहत खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा कि वह बंगलौर का निवासी है। वह किराए पर रहता है और इसके लिए घर के मालिक और उसके बीच रेंट का कॉन्ट्रैक्ट बनाया गया है और इसके साथ ही एक स्थानीय तहसीलदार ने उसके नाम पर एक आवासीय प्रमाण पत्र जारी किया है। कोर्ट ने इस मामले के तथ्यों को देखते हुए कहा कि, “यह कहना अनावश्यक है कि आवासीय प्रमाण पत्र किसी भी निवासी द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वह एक भारतीय या विदेशी राष्ट्रीय हो सकता है, यदि वह किसी विशेष स्थान पर रहता है। आवासीय प्रमाण पत्र नागरिकता का प्रमाण नहीं है।” कोर्ट ने अवलोकन करते हुए उसकी जमानत अर्जी को खारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मुकदमे के दौरान ट्रायल कोर्ट के समक्ष ऐसी प्रार्थना करने के लिए स्वतंत्रता दी। नागरिकता के प्रमाण के संबंध में इसी तरह के अवलोकन पिछले साल गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा किया गया था। इसमें कोर्ट ने कहा था कि भूमि राजस्व रसीदें, पैन कार्ड, बैंक दस्तावेज नागरिकता साबित नहीं करते हैं। इसी प्रकार गुवाहाटी हाईकोर्ट ने यह भी देखा है कि स्कूल प्रमाण पत्र, चुनावी फोटो पहचान पत्र नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है और यह आकलन करते हुए नहीं माना जा सकता है कि क्या व्यक्ति 1985 के असम समझौते के तहत विदेशी है। केस का शीर्षक: खदीजा बेगम CRM/2717/2021