Thursday, November 21, 2024
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एक रिश्ता प्रेम का

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अतुलनीय रिश्ता

अभी कुछ दिनों पहले ही दिल्ली की यात्रा पर था। दिल्ली जाते समय ट्रेन में लगने वाली मार्च की ठिठुरा देने वाली ठंड…। ऐसे में दिल्ली तक के सफ़र में – रात की ट्रेन में सब- अपने अपने गर्म लिहाफ़ मे दुबके थे….।

मैं भी अपनी सीट पर बस दुबकने की ही तैयारी कर रहा था! सोने से पूर्व एक बार फ्रेश होने के इरादे से- मैं वॉशरूम की तरफ़ गया। वॉशरूम के बाहर की ओर- दरवाजे के सामने एक अधेड़ उम्र की- (दिखने में बेहद शालीन ) महिला एक छोटा सा थैला लिए बैठी थी…! शायद उसमें उसका सामान था।

गर्म कपड़ों के नाम पर मात्र एक पतला सा शॉल ओढ़े हुए थी…। जो ठंड से राहत देने के लिए काफ़ी नही थी…। मैंने देखा…महिला की आँखों में आँसू की बूंदें थी..! जो बार बार गालों पर लुढ़क जाती.. और महिला शॉल से उसे पौंछ देती…!तभी बाजू वाले ट्रैक पर कोई ट्रेन गुज़री….. उससे आती हवा में वह महिला सिहर उठी….! कंप-कंपा कर स्वयं को स्वयं मे लपेटने का प्रयास करने लगी।

“कहाँ जा रहीं हैं..आप….! “अचानक से मैंने पूछ लिया।

महिला ने चेहरा ऊपर किया… मुझको देखा।

“दिल्ली…” महिला ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“टिकट नहीं लिया….! “मैंने पूछा।

“बेटा…! अचानक जाना पड़ रहा है…! टीसी आएगा… तो ले लूंगी…! “महिला ने आँसू पोंछते हुए कहा।

“क्यों… ऐसे अचानक क्यों…. इतनी ठंड में…. आपको रिजर्वेशन करवाना चाहिए था…”पता नही क्यों….? पर मुझको उस महिला से एक जुड़ाव सा महसूस हो रहा था- जैसे वो मेरी अपनी हो।

“बेटा….अभी पता चला कि- मेरी बेटी प्रसव के दौरान चल बसी..”कहते कहते महिला फ़फक पड़ी “।

“ओह….” तो आप अकेली…. परिवार का कोई और सदस्य…” मैंने कुछ पूछना चाहा”।

“कोई भी नहीं है… हम माँ बेटी ही एक दूसरे का सहारा थीं…! अभी एक ही साल हुआ… बिटिया का ब्याह किया था….! “महिला सिसकती हुई बोली।

इतने में टीसी आ गया! मैं उस महिला की मनःस्थिति बखूबी समझ रहा था, मैंने महिला का टिकट बनवाया- और उसे सीट पर बैठाकर….अपना एक कंबल निकालकर उनको ओढ़ाया….!

महिला अचरच भरी निगाहों से बस मुझे देखती रही… बेचारी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी…! उन्हें तो मेरे रूप में जैसे स्वयं ईश्वर मिल गए थे।

“मांजी…. आप ये हज़ार रुपये अपने पास रखें…! और अपना पता मुझे नोट करवा दीजिए….!

और हां ! फिर कभी ऐसा मत कहिएगा कि- आपका इस दुनिया में कोई नहीं….है- ये आपका बेटा है न…!

हर महीने जितना भी संभव हो…. पैसे भेजूंगा… और जब कभी मौका लगेगा… तो मैं आपसे मिलने भी आऊंगा…. मांजी मैं आप पर कोई उपकार नही कर रहा हूँ…. मुझे भी आपके रूप में माँ मिली है….! “कहकर मैंने महिला के चरण स्पर्श कर लिए।

महिला की आँखों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी….!

उसे सब-कुछ स्वप्न की तरह प्रतीत हो रहा था….।

महिला कंबल औढ़े चुपचाप लेटी मुझको निहार रही थी- और मैं अपने पर्स मे लगी- अपनी माँ की तस्वीर को देख रहा था…..।

कड़ाके की ठंड में जहाँ लोग- अपने अपने बिस्तरों मे दुबके हुए थे…..! वहाँ अपनेपन के गर्म लिहाफ से ज़िंदगी के सफ़र मे एक अतुलनीय रिश्ता वज़ूद ले चुका था।