Sunday, December 22, 2024
देश

दंड प्रक्रिया संहिता की प्रसिद्ध धारा 151 का व्यावहारिक रूप समझिए

Top Banner

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 151 जनसाधारण के बीच में अत्यंत चर्चित धारा मानी जाती है। यह धारा बड़े बड़े अपराधों को भी रोकने की शक्ति रखती है, लेकिन कई परस्थितियां ऐसी भी देखने को मिलती हैं, जब बगैर अपराध किए लोगों को इस धारा के अंतर्गत जेल जाना पड़ा है। वैधानिक दृष्टि से देखें तो यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 की अपराध से निपटने के लिए एक निवारक विधि है, जो समाज में होने वाले अपराधों को उनके हो जाने के पहले ही समाप्त कर देने के लिए उपयोगी है।
सीआरपीसी की धारा 151 को अपराध के विरुद्ध एक वैक्सीन की तरह समझना चाहिए, जिस तरह एक वैक्सीन किसी बीमारी से बचाव के लिए शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण करता है, उसी प्रकार यह धारा होने वाले अपराधों का निवारण करती है, परंतु राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार कभी कभी इस धारा के मूल अर्थ को नष्ट और धूमिल कर देते हैं। कई ऐसे लोग जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है उन्हें भी धारा 151 के अंतर्गत आरोपी बनाकर कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर दिया जाता है, लेकिन यह विधान नहीं अपितु भ्रष्ट व्यवस्था के कारण होता है।
सीआरपीसी की धारा 151 सीआरपीसी की इस धारा के शब्दों पर यदि विचार किया जाए तो उसके शब्दों के अनुसार यह धारा कहती है कि कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता चलता है, ऐसी परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेशों के बिना और वारंट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है, जिसमें उसे उस पुलिस अधिकारी को यह लगता है कि गिरफ्तार किए बगैर अपराध रोका नहीं जा सकता है।
धारा 151 के शब्दों पर विचार करने से मालूम होता है कि इस धारा में पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार इसलिए करता है, क्योंकि पुलिस अधिकारी को लगता है कि अभी गिरफ्तार नहीं किया गया तो यह कोई किसी बड़े अपराध को अंजाम दे देगा। यह धारा किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास व्यक्ति को पेश करने का आदेश नहीं देती है, केवल गिरफ्तार करने का नियम बता रही है। धारा 151 की उपधारा (2) के अनुसार पुलिस अधिकारी धारा 151 की उपधारा (1 ) के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है तो 24 घंटे से अधिक अभिरक्षा में नहीं रख सकता, क्योंकि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है, यदि उसे गिरफ्तार किया गया है तो 24 घंटे के भीतर किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। जब धारा 151 के अंतर्गत व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस अधिकारी ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करता है। धारा 151 के अंतर्गत कोई मुकदमा चलाए जाने या फिर कोई प्रतिभूति लिए जाने का कोई भी प्रावधान नहीं है। यह धारा अपने आप में कोई अपराध नहीं है। यह धारा तो अपराध रोकने के लिए पुलिस को प्राप्त की गयी एक विशेष शक्ति मात्र है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 109 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट अपने क्षेत्राधिकार के भीतर किसी संदिग्ध व्यक्ति से प्रतिभूति मांग सकता है। ऐसा संदिग्ध व्यक्ति अपनी उपस्थिति छिपाने में चालाकी बरत रहा हो या फिर संदिग्ध व्यक्ति अपनी उपस्थिति को किसी संज्ञेय अपराध को कारित करने की नियत से छुपा रहा हो तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट धारा 109 के अंतर्गत ऐसे संदिग्ध व्यक्ति से प्रतिभूति प्राप्त करने का अधिकारी होता है। दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 109 कार्यपालक मजिस्ट्रेट को ऐसा बंधपत्र लेने की शक्ति प्रदान करती है जो अपराधों को रोकने के लिए और परिशांति कायम रखने के लिए तथा सदाचार को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। धारा 151 तो स्वयं कोई प्रतिभूति लेने का अधिकार नहीं देती परंतु धारा 109 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट उसके समक्ष लाए गए व्यक्ति से प्रतिभूति मांगता है। धारा 151 के अंतर्गत क्यों हो सकती है जेल कभी-कभी यह भी होता है कि छुटपुट घटनाओं में पकड़े गए व्यक्ति को धारा 151 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया जाता है तो ऐसा व्यक्ति जेल भी चला जाता है। इसका कारण यह है कि पुलिस व्यक्ति को धारा 151 के अंतर्गत गिरफ्तार करती है, धारा 151 के अंतर्गत कोई पुलिस अधिकारी केवल 24 घंटे की अवधि तक ही किसी व्यक्ति को निरोध में रख सकता है, इसलिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस अधिकारी द्वारा व्यक्ति को पेश किया जाता है। जब व्यक्ति को 151 के अंतर्गत पेश किया जाता है कार्यपालक मजिस्ट्रेट धारा 109 के अंतर्गत उससे प्रतिभूति मांग लेता है। मजिस्ट्रेट का यह विवेक होता है कि वह अगर चाहे तो व्यक्ति को जेल भी भेज सकता है क्योंकि मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि यदि व्यक्ति को तत्काल छोड़ दिया गया तो यह जाकर कोई अपराध को गठित कर देगा। यहां पर मजिस्ट्रेट को विवेकाधिकार प्राप्त है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट अपने विवेकाधिकार से व्यक्ति को जेल भी भेज देता है तथा धारा 116 के अंतर्गत सूचना की सच्चाई के बारे में जांच बिठा देता है तथा एक ट्रायल कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष चलने लग जाता है और उस पर तारीख के लगने लगती है, जिस से कारण गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास जिस समय बुलाए उस समय उपस्थित होना ही होता है। प्रतिभूति सहित बंधपत्र पड़ जमानत होने के बाद भी तारीखों पर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होना होता है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट का यह विवेक होता है कि व्यक्ति को प्रतिभूति रहित या सहित किसी भी तरह के बंधपत्र पर छोड़े। यदि कार्यपालक मजिस्ट्रेट चाहे तो प्रतिभूति मांग सकता है, यदि कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि कोई गंभीर अपराध होने की संभावना कम है तथा उसके समक्ष पेश किया गया व्यक्ति कोई अपराध करेगा इसकी संभावना न्यून है तो ऐसी परिस्थिति में वह बगैर प्रतिभूति के केवल बंधपत्र के आधार पर जिसे मुचलका कहा जाता है छोड़ देता है।