देश ने खोया रतन टाटा के रूप मे एक बिजनेश का भीष्म पितामह
मुम्बई हमले के दौरान ताज होटल मे हो रही कार्यवाही के दौरान जल रही होटल को रतन टाटा दूर खड़े देख रहेथे उसी वक्त उन्होंने इरादा कर लिया कि एक दिन ताज होटल फिर से चालू होगा यह उनका मजबूत इरादा ही था जिसके दम पर इक्कीस महीने के बाद ताज होटल फिर से शुरूहुआ ताज होेटल मे आग लग जाने के कारण टाटा होटल के शेयर गिर गए थे होटल खुलने के बाद फिर से चढ़ने लगे और बाद के सालों में कई गुना तक बढ़ गए। रतन टाटा हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्हें इस कदर याद किया जा रहा है जैसे वो लाखों लोगों के बीच अभी भी हैं जिन लोगों ने टाटा समूह की कंपनियों में वर्षो काम किया और जिन लोगों ने टाटा समूह के साथ कभी काम भी नहीं किया था सब उनकी याद मे इस कदर बेहाल है कि जैसे रतन टाटा ने जो कुछ किया सब उनके लिए ही किया।
जिस तरह से लोग याद करे बता रहे है कि रतन टाटा ने हर किसी के दिल में अपने लिए केवल इज्जत उनके प्रति लोगों का सम्मान आदर ही रतन टाटा की सबसे बड़ी कंपनी थी। रतन टाटा
बिजनेस लीडर कहे जाते हैं लेकिन न जाने कितने मामलों में लोगों के बनकर जीते रहे तभी तो लोग उनके लिए रो रहे हैं उनके योगदान के लिए शुक्रिया कर रहे हैं ऐसे लोग जिन्होंने कभी किसी सार्वजनिक हस्ती के लिए उदास नही हुए वे रतन टाटा के लिए आशू बहा रहे है। मुम्बई हमले के दौरान हुई आगजनी के बाद बताते है कि तकरीबन पूरे दिन रतन टाटा होटल के वाले कोने पर खड़े होकर ऑपरेशन देखते रहते कभी वह अकेले खड़े होते तो कभी उनके साथी और उनके पास उनके अपने स्टाफ होते थे बीच – बीच. में उन्हें सुरक्षा की अपडेट भी मिल रही थी रतन टाटा ने ठान लिया था कि होटल को खड़ा करेंगे मुंबई हमले के बाद कई शोधकर्ताओ ने ताज होटल का शोध किया और वे यह जानकर बडे अचम्भे मे पड़ गये कि जब आतंकवादी होटल में घुसे तो टाटा के कर्मचारी जान बचाकर क्यों नहीं भागे?
भीतर रहकर मेहमानों की मदद करते रहे रिसर्च में पाया गया कि इसके पीछे एक ही कारण था होटल के प्रति अपने समूह के प्रति उनकी वफादारी इस हमले के दौरान एक मैनेजर की पत्नी और बेटों की होटल के टॉप फ्लोर पर आग में मौत हो गई थी लेकिन तब भी वह मेहमानों की मदद करते रहे। कंपनी ने भी अपनी तरफ से अपना फर्ज निभाने मे कोई कसर नही छोड़ा । हमले में मारे गए लोगों के नाम समर्पित कर दिया गया दौ हज़ार नौ में टाटा समूह की ओर से रतन टाटा ने बारह फीट ऊंचे स्मारक का अनावरण किया जिस पर एकतीस कर्मचारियों और मेहमानों के नाम लिखे थे जो हमले के दौरान होटल में मारे गएथे आतंकी हमले के दो हफ्ते बाद ही रतन टाटा ताज पब्लिक सर्विस ट्रस्ट और इस हमले से प्रभावित लोगों के पुनर्वास का कम शुरू कर दिये रतन टाटा ने हमले से प्रभावित हर परिवार से खुद मुलाकात की थी उनकी मदद की थी बच्चों और आश्रितों की दुनिया में कहीं भी शिक्षा लेने की सारी जिम्मेदारी उठाने एवं पूरे परिवार और आश्रितों के लिए मेडिकल सहायता प्रदान करने का वादा किया और हर प्रभावित व्यक्ति के लिए आजीवनं जीवन यापन की व्यवस्था की ताकि उन्हें सदमे से उबरने में मदद मिल सके उन कर्मचारियों के सारे लोन माफ कर दिए गए
इस ऐतिहासिक होटल की तस्वीर उन लोगों के फोन और एल्बम में भी ज्यादा है जो कभी इसके भीतर कदम नहीं रख सके यह टाटा के प्रति सम्मान था जो अंदर नहीं आ सका उसे भी लगा उसके किसी अपने का यह होटल है टाटा होटल मुंबई हमले के बाद रतन टाटा ने कभी गुस्से से बात नहीं की, किसी को ललकारानही, हमले के बाद इंटरव्यू में रतन टाटा पाकिस्तान का नाम नहीं लेते, इतना बड़ा नुकसान उठाया लेकिन रतन टाटा ने राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों की भावनाओं को नहीं भड़काया नही और नही कभी कहा कि उनके होटल पर हमला भारत की अर्थव्यवस्था पर हमला है। हमले के बाद की यह बाते रतन टाटा की भाषा उनका संयम उनकी संवेदनशीलता का तो कोई मुकाबला ही नही । रतन टाटा को राष्ट्रवादी कहा जा रहा है राष्ट्रवादी तो थे मगर उन्होंने राष्ट्रवाद को करुणा की नजर से देखा बदला लेने का सामान नहीं बनाया उनका राष्ट्रवाद लोक कल्याण के लिए समर्पित था
आज भी हम इस हमले में मारे गए लोगों और दुश्मनों से रक्षा करते हुए जान देने वालों का शोक मानते हैं लेकिन करणा और संवेदनशीलता की तारीफ जरूर की जानी चाहिए हम हमेशा इस बात को लेकर संतोष करना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले वर्षों में भी और निखरता रहेगा रतन टाटा ने इस पोस्ट को मुंबई पुलिस को भी टैग किया उनके कार्य से यह पता चलता है कि जिस शहर में टाटा रहते उस मुम्बई शहर से रतन टाटा के कितने गहरे रिश्ते थे ।
मुंबई पुलिस को टैग करते हुए उन्होंने लिखा था हम याद करते हैं धर्म और आज की राजनीति में रतन टाटा किसी के निशाने पर नहीं। वे सबके लिए सुकून बने रहे रतन टाटा के लिए मुंबई प्यारी थी तो टाटा समूह के बसाए जमशेदपुर शहर को भी लोग उसी प्यार से याद कर रहे हैं आज वहां भी टाटा याद किए जा रहे हैं
जमशेदपुरउत्तर और पूर्वी भारत का एक शानदार शहर है इस हिस्से में जमशेद पुर है जिसने भारत की विविधता को समेट कर रखा था यह भारत का पहला शहर था जिसे सुनियोजित तरीके से बसाया गया था जमशेद जी टटा का सपना था कि ऐसा शहर हो जिसमें चौड़ी सड़कें छायादार पेड़ बहुत से बगीचे खेलने के लिए मैदान हो और पर्यावरण के साथ संतुलन बनाया जा सके दो नदियों के संगम पर बसा है जमशेदपुर। एक हज़ार नौ सौ उन्नीस में जमशेदपुर का नाम पड़ा था मीडिया पर शोध करने वाले और मीडिया का लोकतंत्र किताब के लेखक विनीत कुमार जमशेदपुर से ही उन्होंने रतन टाटा के निधन पर जमशेदपुर को याद किया विनीत लिखते हैं कि आज मां के शहर में शोक होगा ऐसा शोक कि जैसे हर किसी के घर से कोई चला गया है।
महाराष्ट्र और झारखंड ने रतन टाटा के निधन पर राज्य शोक की घोषणा की मुंबई के नरिमन पॉइंट पर एन सीपी ऑडिटोरियम में अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को रखा गया टाटा समूह का बनाया हुआ कला और संस्कृति के क्षेत्र में टाटा समूह और रतन टाटा का योगदान इतना बड़ा है उस पर अलग से बात की जानी चाहिए।
यहां पर बड़ी संख्या में शहर के लोग रतन टाटा को अंतिम श्रद्धांजलि देनेन सीपीए के बाहर की लंबी कतार बता रही थी कि रतन टाटा को लेकर उनके मन में कितना सम्मान रहा होगा। प्रधानमंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तक रतन टाटा के निधन पर शोक जताया महाराष्ट्र कैबिनेट ने रतन टाटा को श्रद्धांजलि दी है और भारत रत्न देने की मांग की।
एक बार रतन टाटा ने ही कहा था कि उन्हें भारत रत्न देने की मांग ना की जाए यहां पर आए सभी आम लोग हैं टाटा संस्थान में वैसे भी लाखों लोग काम करते हैं अगर केवल वह तो मुंबई भर इतने लोगों को टाटा ने अपनी कंपनियों के जरिए काम दिया है उनकी जिंदगी बनाई रतन टाटा ने कहा था उनके मरने पर काम बंद नहीं होना चाहिए उनकी कंपनियों में काम चल रहा है यहां आने वाले लोगों ने यही कहा रतन टाटा एथिकल बिजनेस के भीष्मपिताम थे उन्होंने गलत काम कभी नहीं किया। आपने किसी बिजनेसमैन की ऐसी अंन्तिम विदाई देखी है? रतन टाटा ने यही कमाया है।