Monday, December 23, 2024
चर्चित समाचार

वसीयत या मुख्तारनामे से नहीं साबित होगी प्रॉपर्टी की मालकियत-सुप्रीम कोर्ट

Top Banner

प्रॉपर्टी को लेकर हाल ही में ने ये अहम फैसला सुनते हुए बताया है की सिर्फ वसीयत या मुख्तारनामे के दम पर आप किसी भी प्रॉपर्टी पर अपनी मालकियत साबित नहीं कर सकते | आइए डिटेल में जानते हैं कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वसीयतनामा या जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीएको किसी भी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने ‌संबधी एक दस्तावेज या स्वामित्व दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि जीपीए धारक द्वारा किसी भी दस्तावेज का निष्पादन न करने से उक्त जीपीए बेकार हो जाता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मिथल की खंडपीठ ने घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा,

जनरल पॉवर ऑफ अटार्नी और इस प्रकार निष्पादित वसीयत के संबंध में, किसी भी राज्य या हाईकोर्ट में प्रचलित प्रै‌‌क्टिस, यदि कोई है, जिनके तहत इन दस्तावेजों को स्वामित्व दस्तावेजों के रूप में पहचाना जाता है या किसी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने वाले दस्तावेजों के रूप में पहचाना जाता है, यह सांविधिक कानून का उल्लंघन है।

इस प्रकार की कोई भी प्रैक्टिस या परंपरा कानून के विशिष्ट प्रावधानों, जिसके लिए स्वामित्व के दस्तावेज के निष्पादन या स्‍थानांतरण या पंजीयन की आवश्यकता होती है, ताकि 100 रुपये से अधिक मूल्य की अचल संपत्ति में अधिकार और स्वामित्व प्रदान किया जा सके, को ओवरराइड नहीं करेगी।

तथ्य

श्री घनश्याम (अपीलकर्ता) दिल्ली स्थित एक संपत्ति (वाद संपत्ति) के मालिक थे। उन्होंने वाद संपत्ति की बिक्री के लिए श्री योगेंद्र राठी (प्रतिवादी) के साथ 10.04.2002 को एक बिक्री समझौता किया और प्रतिवादी से संपूर्ण बिक्री प्रतिफल प्राप्त किया।

उसी दिन, अपीलकर्ता ने वाद संपत्ति के लिए प्रतिवादी को वसीयत निष्पादित की। अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के पक्ष में जीपीए भी निष्पादित किया। वाद संपत्ति का कब्जा प्रतिवादी को सौंप दिया गया, हालांकि कोई बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया।

प्रतिवादी ने अपीलकर्ता को लाइसेंसधारी के रूप में 3 महीने के लिए वाद संपत्ति के एक हिस्से पर कब्जा करने की अनुमति दी। तीन माह की अवधि बीत जाने के बाद भी अपीलकर्ता ने संपत्ति खाली नहीं की। प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के खिलाफ वाद संपत्ति से बेदखली और मध्यवर्ती (Mesne) मुनाफे की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया।

प्रतिवादी ने 10.04.2002 को सेल एग्र‌ीमेंट, जनरल पावर ऑफ अटार्नी, मेमो ऑफ पोजेशन, बिक्री के लिए भुगतान की रसीद और 10.04.2002 की वसीयत के बल पर वाद संपत्ति के स्वामित्व का दावा किया।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी द्वारा उद्धृत दस्तावेजों को कोरे कागजों पर हेरफेर किया गया है। हालांकि, उस आशय का कोई सबूत नहीं था। अपीलकर्ता ने ऐसे दस्तावेजों के निष्पादन या उसके द्वारा बिक्री प्रतिफल की प्राप्ति पर विवाद नहीं किया। ट्रायल कोर्ट ने माना कि दस्तावेजों में कोई हेरफेर नहीं हुआ था और इस प्रकार प्रतिवादी बेदखली और मध्यवर्ती मुनाफे की वसूली के लिए डिक्री का हकदार है।

अपीलकर्ता ने प्रथम अपील दायर की और उसके बाद हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील दायर की और दोनों का निर्णय प्रतिवादी के पक्ष में किया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

फैसला

खंडपीठ ने कहा कि बिक्री समझौता न तो स्वामित्व का दस्तावेज है और न ही बिक्री द्वारा संपत्ति के हस्तांतरण का विलेख है। इसलिए, यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 के मद्देनजर, वाद संपत्ति पर प्रतिवादी को कोई पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं करता है।

हालांकि, बिक्री के लिए समझौते में प्रवेश करने, बिक्री के लिए तय संपूर्ण राश‌ि का भुगतान करने जैसे कारक और हस्तांतरणकर्ता द्वारा कब्जे में रखना यह दर्शाता है कि प्रतिवादी के पास बिक्री समझौते के आंशिक प्रदर्शन के आधार पर वास्तविक अधिकार है।

प्रतिवादी के स्वामित्व अधिकार को हस्तांतरणकर्ता (अपीलकर्ता) डिस्टर्ब नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि वाद संपत्ति में अपीलकर्ता का प्रवेश प्रतिवादी के लाइसेंसधारी के रूप में था न कि संपत्ति के मालिक के रूप में।

निष्पादक के जीवनमें वसीयत में कोई बल नहीं होता है

वसीयत के माध्यम से कोई स्वामित्व प्रदान किया जा सकता है या नहीं, इस मुद्दे पर बेंच ने कहा कि वसीयत निष्पादक की मृत्यु के बाद ही प्रभावी होती है। चूंकि वसीयत में निष्पादक के जीवन के दौरान कोई बल नहीं होता है, इसलिए अपीलकर्ता की वसीयत प्रतिवादी को कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है।

वसीयतनामा या जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी को किसी भी अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करने संबंधी दस्तावेज या स्वामित्व दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है

यह देखा गया कि अपीलकर्ता द्वारा निष्पादित जनरल पॉवर ऑफ अटॉर्नी अप्रासंगिक है क्योंकि न तो बिक्री विलेख निष्पादित किया गया है और न ही सामान्य मुख्तारनामा धारक द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई की गई है, जो प्रतिवादी को स्वत्व प्रदान कर सके।

खंडपीठ ने कहा, जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा किसी भी दस्तावेज का निष्पादन न करने के परिणामस्वरूप उक्त सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी बेकार हो जाती है।

खंडपीठ ने सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्रा लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, (2009) 7 एससीसी 363 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अचल संपत्ति को एक पंजीकृत हस्तांतरण विलेख के बजाय बिक्री समझौते, जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत के माध्यम से हस्तांतरण को रोक दिया था।

खंडपीठ ने हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण को बरकरार रखा कि प्रतिवादी मध्यवर्ती मुनाफे के साथ बेदखली की डिक्री का हकदार है।