Friday, November 22, 2024
कविता

शहर में भैया दम घुटता है, जंगल में रहने आ जाऊं क्या?

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मैंने कहा ए जंगल वालों शहर में रहने आओगे क्या?
जंगल में तो गंध बहुत है!

बिखरे पत्ते सूखी डाली,
बिन बिजली ये रातें काली।
जो जित चाहे सो तित धाए,
इसको मारे उसको खाए।।
कैसे रह लेते हो भैया,
यहां कोई सरकार नहीं है?

आओ तुमको शहर दिखाऊं,
ऊंची बिल्डिंग चौड़े रस्ते।
मोटर गाड़ी बिजली दस्ते।।
सब कुछ है कानून से चलता,
सबका अपना एक नियम है।
जीते हैं हम लोग तंत्र में,
सुविधाएं बोलो क्या कम है।।

सुनकर बोले जंगल वाले,
हंस कर जैसे वे मतवाले।
जाओ भैया क्या बकते हो,
अक़ल जरा भी क्या रखते हो।।
अच्छा है सरकार नहीं है,
वरना हम भी लड़ते रहते ।
जाति धर्म में बंटते रहते।।

आए हमको शहर दिखाने।
हम भी सुनते हैं अफसाने।

मानवता की चीखें अक्सर,
शहरों से रोकर आती हैं।
शहरों में मर गई सभ्यता,
जंगल में फेंकी जाती है।।

हां हम जंगल के वासी हैं।
हम हैं थोड़े फूहड़ वहसी।।

मगर बताओ वहसीपन,
जो दिखता शहरों की सड़कों पर।
कभी सुनी क्या वहसी चीखें,
तुमने जंगल से भी होकर।।
क्या कभी सुना मासूम कोई,
जंगल में भी रौंदी जाती हो।
क्या कभी सुना निर्भया कोई,
यहां नोच नोच फेंकी जाती हो।।
क्या कभी सुना हमने रिश्तों में,
की हो कोई गद्दारी।
क्या कभी सुना मतलब की खातिर, प्रकृति से हमने तोड़ी यारी।।
हां हम छीना-झपटी करते,
पर बस अपनी भूख बुझाने।
मगर तुम्हारी भूख बड़ी है,
कितनी भैया राम ही जाने।।

जहां दिखी तुमको हरियाली।
तुमने ले ली धरती खाली।।
पर्वत जंगल तुमने काटे।
नदियां सागर तुमने पाटे।।
इतनी बड़ी है प्यास तुम्हारी।
अब मंगल है आस तुम्हारी।।

हमको ना तुम शहर दिखाओ।
जहां लगे मतलब के दांव।।
रिश्ते हैं बेजार जहां पर।
जीवन बस व्यापार जहां पर।।
जहां है कूड़ा करकट फैले।
जहां है सागर तट भी मैले।।
जहां नदी भी पथरीली है।
जहां सांस भी जहरीली है।।
तुम्हें मुबारक शहर तुम्हारा।
हमको तो जंगल ही प्यारा।।
इतना ही बस चिड़िया बोली।
हमने झट से आंखें खोली।।
देखा तो सब अंतध्यान था।
सिरहाने बजता अलार्म था।।
अच्छा तो सब कुछ सपना था।
सुंदर वहीं शहर अपना था।।
फिर हमने चालू कर हीटर।
फिल्टर वाला पानी पीकर।।
चेहरे पर एक मास्क लगाया।
थोड़ा सिस्टम को गरियाया।।
निकल पड़ा फिर गाड़ी लेकर,
सपनों में था सुंदर कल।
राह में आया फिर एक जंगल।।
सोच रहा हूं यही ठहर कर।
खुली हवा में सांसे लेकर।।
जंगल वालों से यह पूछूं,
शहर में भैया दम घुटता है,
जंगल में रहने आ जाऊं क्या???

योगेश मिश्रा