Monday, December 23, 2024
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पिता की सम्पत्ति पर दहेज़ के बाद भी बेटी का पूरा अधिकार

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हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रॉपर्टी को लेकर ये बड़ा फैसला सुनते हुए बताया है की अगर बेटी को दहेज़ दे दिया है तो उसके बाद भी उसका पिता की प्रॉपर्टी पर हक़ बनता है

Mumbai High Court previously known as the Bombay High Court

अगर घर के बेटी को शादी के समय दहेज दिया गया है, तो भी वह परिवार की संपत्ति पर अधिकार मांग सकती है। हाल ही में एक मामले में सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने यह बात कही है। अपीलकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि उन्हें चार भाइयों और मां की तरफ से संपत्ति में से कोई भी हिस्सा नहीं दिया गया था।

चार भाइयों और मां ने तर्क दिया था कि शादी के समय चारों बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था और वे परिवार की संपत्ति पर अधिकार नहीं मांग सकती। जस्टिस महेस सोनक की तरफ से इस तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया गया। उन्होंने कहा, ‘अगर यह मान भी लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि बेटियों के पास परिवार की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा।’

उन्होंने आगे कहा, ‘पिता के निधन के बाद बेटियों के अधिकारों को भाइयों की तरफ से जिस तरह से खत्म किया गया है, वैसे खत्म नहीं किया जा सकता।’ खास बात है कि कोर्ट में यह भी साफ नहीं हो सका कि चारों बेटियों को पर्याप्त दहेज दिया गया था या नहीं।

याचिकाकर्ता ने अदालत से अपने परिवार की संपत्ति में भाइयों और मां की तरफ से थर्ड पार्टी राइट्स बनाने के खिलाफ आदेश की मांग की थी। महिला ने बताया कि उनकी मां और अन्य बहनें साल 1990 में हुई ट्रांसफर डीड पर भाइयों के पक्ष में सहमति जता चुकी हैं। इस ट्रांसफर डीड के आधार पर ही परिवार की दुकान और घर दो भाइयों के पक्ष में पहुंच गए।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उन्हें इसके बारे में 1994 में पता चला और बाद में इसे लेकर सिविल कोर्ट में कार्यवाही शुरू हुई।

वहीं, भाइयों का कहना है कि बहन का संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं है। इसके लिए वह उन संपत्तियों पर मौखिक दावों का हवाला दे रहे हैं, जहां उनकी बहनों ने अपने अधिकार छोड़ दिए थे। भाइयों की तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि लिमिटेशन एक्ट के तहत मौजूदा कार्यवाही रोक दी गई थी। क्योंकि एक्ट में डीड पूरी होने के बाद मुकदमा दायर तीन महीनों में ही करना होता है।

भाइयों ने तर्क दिया है कि ट्रांसफर डीड 1990 में हुई है और मुकदमा 1994 में किया गया है। इसपर जस्टिस सुनक ने कहा कि अपीलकर्ता ने पहले ही बताया है कि उन्होंने डीड के बारे में पता चलने के 6 सप्ताह में ही मुकदमा किया था। उन्होंने यह भी बताया कि भाई इस बात को भी साबित करने में असफल रहे कि महिला को डीड के बारे में 1990 में पता लगा था। फिलहाल, कोर्ट ने ट्रांसफर डीड को रद्द कर दिया है और अपीलकर्ता के पक्ष में आदेश जारी किए हैं।