Saturday, December 21, 2024
कविता

हिंदी का उत्थान करो

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रवि यादव”प्रीतम”

हिंदी भाषा हिंद देश की हिंदी का गुणगान करो
रहो अमेरिका रूस जहां भी हिंदी का उत्थान करो

हिंदी अपनी भाषा जैसे सब पक्षी में सारस है

हिंदी अपनी भाषा जैसे पाषाणो में पारस है
हिंदी अपनी भाषा जैसे वनस्पति में बरगद है
अपरिमेय है अपनी हिंदी इसका अति ऊंचा कद है
मिश्री और मुनक्के के बिन अपनी मृदुल ज़बान करो
रहो अमेरिका रूस जहां भी हिंदी का उत्थान करो

हिंदी के ही गोदी में है अमर कुंड आदर्शों का
हिंदी के आगे झुक जाता शीश सभी उत्कर्षों का
विश्व गुरु है हिंद हमारा विश्व प्रिया यह हिंदी है
भाषा जैसे एक सुहागन के माथे की बिंदी है
भूली शक्ति हिंदी को फिर याद वीर हनुमान करो
रहो अमेरिका रूस जहां भी हिंदी का उत्थान करो

सूरदास सूरज हिंदी के नभ में सदा दहकते हैं
तुलसीदास सदा हरि चेरा तारों बीच चमकते हैं
हिंदी सूरज चांद सितारा है बाकी सब जुगनू हैं
जो अंधेरा होने पर खुद को ही न तक सकते हैं
सब झोली फैला देंगे पहले खुल कर तो दान करो
रहो अमेरिका रूस जहां भी हिंदी का उत्थान करो