ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
तुम्हें अपनी मुहब्बत दे रहा हूँ
है जितनी पास दौलत दे रहा हूँ
बुरा क्या है अगर ख़्वाबों को सच में
बदल जाने की हिम्मत दे रहा हूँ
हज़ारों ऐब हैं मुझमें ही और मैं
जहां भर को नसीहत दे रहा हूँ
ख़ुशी से दिल-जिगर में तुमको दिलबर
समा जाने की दावत दे रहा हूँ
नहीं हर्गिज़ तू इस क़ाबिल है फिर भी
ज़माने तुझ को इज़्ज़त दे रहा हूँ
सहेजो या लुटाओ आज से मैं
तुम्हें दिल की हुकूमत दे रहा हूँ
ज़ियादा, कम नहीं सबको तवज्जो
फ़क़त हस्ब ए ज़रूरत दे रहा हूँ