Sunday, December 22, 2024
जौनपुर

“लावारिस बचपन”

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रवि यादव “प्रीतम”

शिक्षा से वंचित हूं जीवन को भिक्षा से सींच रहा हूं
भूखे,प्यासे ,नंगे, भिखमंगे इन सबके बीच रहा हूं
गरमी भर झूलसे ठण्ड़ी में कांँपे नग्न बदन है
मैं यतीम हूँ नाम मेरा एक लावारिस बचपन है

कभी मदारी के रस्सी पर निर्भय होकर चलने वाला
उठा कबाड़ रहा कूड़े से कड़ी धूप में जलने वाला
लिए कटोरा हाथों में अक्सर दर-ब-दर टहलने वाला
कभी किसी होटल के मालिक के टुकड़ों पर पलने वाला
इच्छा जिसकी गुड़ी जलेबी खाने की होती रहती है
सालों साल अधूरी इच्छा होती और रोती रहती है
देख के कोई खेल खिलौने पाने की हठ कर लेता है
मगर न हासिल कर पाने पर मन से हठ को तज देता है
मात-पिता को लाड लडाते बाल पे दृष्टि पड़ जाती है
फिर दिल व्यग्र बिलख उठता है बंजर नजरें भर आती हैं
कभी कहीं अखबार बांटते कभी कहीं पर जूता सिलते
आप सभी आदरणीय से हर दिन रहता हूं मिलते-जुलते
आप बोलते हैं तेवर में मैं हूं बोलता हँसते-खिलते
राम राम कर लेता हूं मैं आप सभी से चलते-चलते
मुझसे बेहतर लाश है उसके ऊपर नया कफ़न है
मैं यतीम हूँ नाम मेरा एक लावारिस बचपन है

नाजायज़ रिश्ता जिनका भी फलीभूत होता है
नूर निग़ाहों का उनके मन का ज़मीर खोता है
मुझ बेबस को निर्दयता से छोड़ चले जाते हैं
नर्म जिस्म को झूण्ड में आकर के कुत्ते खाते हैं
इसके पहले देख लिया जो मुझको कोई फरिश्ता
जोड़ लिया करता है मुझसे आजीवन का रिश्ता
मगर ये अद्भुत किस्सा मेरे साथ में कम होता है
रही सही किस्मत तो पालक यतिमाश्रम होता है
कई बार तो भूख से व्याकुल रात-रात भर सोता न हूँ
ऐसी भी बेबसी है होती मार पड़े पर रोता न हूँ
करता दुर्व्यवहार ज़माना रहता है मुझ सलोने से
कभी काल-कवलित होता हूँ लाईलाज होने से
न घर-द्वार मेरा है कोई खानाबदोश मैं हूंँ
धरा सुन्दरी पर इकलौता गरल कोष भी मैं हूंँ
सहमी-सहमी साँसें मेरी दबी-दबी धड़कन है
मैं अनाथ हूँ नाम मेरा एक लावारिस बचपन है