ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
दर्दे दिल की सदा से डरते हैं
ज़िन्दगी की दुआ से डरते हैं
आदमी क्या हमें डरायेगा
हम तो केवल ख़ुदा से डरते हैं
खौफ दुश्मन से कुछ नहीं लेकिन
दोस्तों के दगा से डरते हैं
जाने कैसा ये दौर आया है
बा वफ़ा, बे वफ़ा से डरते हैं
हाथ में ले के जान हैं चलते
यार हम कब कज़ा से डरते हैं
मौत हमको कुबूल है लेकिन
हम विरह की सज़ा से डरते हैं
इन्तिहा चाहते तो हैं हीरा
जाने क्यों इब्तिदा से डरते हैं