मिलावट का कहर स्वास्थ्य के लिए बन रहा जहर
*जौनपुर।* जिले के हर छोटी बड़ी दुकानों पर मिलावटी मसालों की भरमार है। मिलावट का मामला मसालों तक ही सीमित नहीं है। मिलावटखोरों ने दवाइयों, तेल, घी, दूध, मिठाइयों से लेकर अनाज तक किसी चीज को नहीं छोड़ा है। हर साल त्योहारों पर मिलावटी मावा और मिलावटी मिठाइयां बिकती हैं।
सवाल है कि आखिर मिलावट का बाजार इतना धडल्ले से क्यों पनप रहा है, क्यों सिस्टम लाचार है, मिलावटखोरी का अंत क्यों नहीं हो पा रहा है? लोकसभा चुनाव के दौरान यह प्रकरण क्यों नहीं चुनावी मुद्दा नहीं बनता? पेट भरने की खाद्य-सामग्री को मिलावट के कारण दूषित एवं जानलेवा कर दिया गया है। खाद्य पदार्थों में मिलावट मुनाफाखोरी का सबसे आसान जरिया बन गई है। खाने-पीने की चीजें बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं।
किसी भी वस्तु की शुद्धता के विषय में हमारे संदेह एवं शंकाएं बहुत गहरा गयी हैं। मिलावट का धंधा शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक भी फैला हुआ है और इसकी जड़ें काफी मजबूत हो चुकी हैं। जीवन कितना विषम और विषभरा बन गया है कि सभी कुछ मिलावटी है। सब नकली, धोखा, गोलमाल ऊपर से सरकार एवं संबंधित विभाग कुंभकरणी निद्रा में है। मिलावटी खाद्य पदार्थ धीमे जहर की तरह हैं। ये दिल और दिमाग से जुड़ी बीमारियों, अल्सर, कैंसर वगैरह की वजह बन सकते हैं। खाने वालों को आभास भी नहीं होता कि वे धीरे-धीरे किसी गंभीर बीमारी की ओर जा रहे हैं। वे किसी पर भरोसा कर कुछ खरीदते हैं और मिलावटखोर तमाम कानून बने होने एवं प्रशासन की सक्रियता के बावजूद इस भरोसे को तोड़ रहे हैं।
मिलावट करने वालों को न तो कानून का भय है और न आम आदमी की जान की परवाह है। दुखद एवं विडम्बनापूर्ण तो ये स्थितियां हैं जिनमें खाद्य वस्तुओं में मिलावट धडल्ले से हो रही है और सरकारी एजेन्सियां इसके लाइसैंस भी आंख मूंदकर बांट रही है। जिन सरकारी विभागों पर खाद्य पदार्थों की क्वॉलिटी बनाए रखने की जिम्मेदारी है वे किस तरह से लापरवाही बरत रही है, इसका परिणाम आये दिन होने वाले फूड प्वाइजनिंग की घटनाओं से देखने को मिल रहे हैं। मिलावट के बहुरुपिया रावणों ने खाद्य बाजार जकड़ रखा है। मिलावट का कारोबार अगर फल-फूल रहा है, तो जाहिर है किइसके खिलाफ जंग उस पैमाने पर नहीं हो रही है, जैसी होनी चाहिए। खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वाला हिंसक एवं दरिंदा तो न जाने कितनों को मृत्यु की नींद सुलाता है, कितनों को अपंग और अपाहिज बनाता है। इन हिंसक, क्रूर एवं मुनाफाखोरों पर लगाम न लगने की एक वजह यह भी है कि ऐसा करने वालों को लगता है, इससे होने वाले मुनाफे की तुलना में मिलने वाली सजा बहुत कम है।
जाहिर है, सजा कड़ी करने के साथ ही यह भी पक्का करना होगा कि दोषी किसी तरह से बच न निकलें। यही नहीं, लोगों को पता होना चाहिए कि मिलावट की शिकायत कहां करनी है। हमारे प्रयासों में कमी न रहे, तभी यह काला धंधा रुक सकेगा। कारोबार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण मिलावट हर जगह देखने को मिलती है। कहीं दूध में पानी की मिलावट होती है, तो कहीं मसालों में रंगों की। दूध, चाय, चीनी, दाल, अनाज, हल्दी, फल, आटा, तेल, घी आदि ऐसी तमाम तरह की घरेलू उपयोग की वस्तुओं में मिलावट की जा रही है। यानी, पूरे पैसे खर्च करके भी हमें शुद्ध खाने का सामान नहीं मिल पाता है। मिलावट इतनी सफाई से होती है कि असली खाद्य पदार्थ और मिलावटी खाद्य पदार्थ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। जीवन मूल्यहीन और दिशाहीन हो रहा है। हमारी सोचजड़ हो रही है। मिलावट, अनैतिकता और अविश्वास के चक्रव्यूह में जीवन मानो कैद हो गया है। घी के नाम पर चर्बी, मक्खन की जगह मार्गरीन, आटे में सेलखड़ी का पाउडर, हल्दी में पीली मिट्टी, काली मिर्च में पपीते के बीज, कटी हुई सुपारी में कटे हुए छुहारे की गुठलियां मिलाकर बेची जा रही हैं।
दूध में मिलावट का कोई अंत नहीं। नकली मावा बिकना तो आम बात है। नकली जीरे का कारोबार अब यहां भी पहुंच गया है। मिलावट के कारण हम एक बीमार समाज का निर्माण कर रहे हैं। शरीर से रुग्ण, जीर्ण-शीर्ण मनुष्य क्या सोच सकता है और क्या कर सकता है?
क्या मिलावटखोर परोक्ष रूप से जनजीवन की सामूहिक हत्या का षड्यंत्र नहीं कर रहे? फूड इंस्पैक्टरों का दायित्वहै कि वह बाजार में समय-समय पर सैम्पल एकत्रित कर जांच करवाएं लेकिन जब सबकी ‘मंथली इन्कम’ तय हो तो फिर जांच कौन करे? हालत यह है कि बाजारों में धूल-धक्कड़ के बीच घोर अस्वास्थ्यकर माहौल में खाद्य सामग्रियां बेची जा रही है।