Thursday, November 21, 2024
चर्चित समाचार

कर्मो का फल

Top Banner

 

जो बोएगा वहीं पाएगा तेरा किया आगे आएगा सुख दुख है क्या फल कर्मों का जैसी करनी वैसी भरनी जैसी करनी वैसी भरनी
जैसे ही मोबाइल फोन पर रिंगटोन बजी सुधा एकबार फिर से अपने पति मोहन को गुस्से से देखने लगी उसे ऐसे गानों से खींज होती थी मगर मोहन को ऐसे गानों को सुनने में सुकुन मिलता था अक्सर जब भी इसके चलते दोनों में नौकझौक होती तो मोहन का वहीं पुराना तर्क होता था सुधा ऐसे गानों में एक ईश्वर की चेतावनी होती है जो हमें जीवन में ग़लत रास्तों पर चलने से रोकती है एकबार सोचने के लिए विवश करती है की सोच लो जो तुम कर रहे हो वो कितना सही है और कितना ग़लत कहीं बाद में पछताना ना पड़े मगर सुधा हरबार ऐसी बातों को किताबी मानकर मोहन का परिहास करने लगती की ऐसा कुछ नहीं होता
खैर मोहन के मोबाइल फोन से बात करने के बाद सुधा बोली सुनिए में बाजार जा रही हूं कल हमें मम्मी पापा और भैया भाभी ने स्पेशल तौर पर बुलवाया है तो उनके लिए कुछ खरीदारी करनी है कहकर सुधा बाजार पहुंचीं जहां अपने भाई के बच्चों और मम्मी पापा के लिए कुछ कपड़े खरीदे लोहड़ी और मकर संक्रांति पर्व के चलते दुकान पर बहुत भीड़ थी दुकानदार ने खरीदारी का कुल बिल तेईस सौ रुपए बताए सुधा ने पर्स से पांच पांच सौ के पांच नोट दुकानदार की और बढ़ाए मगर अत्यधिक ग्राहकों के चलते दुकानदार वापसी में सौ सौ के दो नोटों की जगह पर पांच सौ के दो नोट सुधा की ओर बढ़ा दिए सुधा ने जब देखा तो खुशी से उछल पड़ी और चुपचाप दोनों नोटों को जल्दी से पर्स में डालकर वहां से तेज़ी से निकल गई घर पहुंच कर वह अपने आप पर खुश हो रही थी और सोचने लगी देखा में ना कहती थी कुछ नहीं होता और ये ….
खैर अगली शाम उन्हें जाना था तो समय से स्टेशन निकल गये पूरी रात का ट्रेन का सफर तय करना था मोहन ने सुधा और दोनों बच्चों को खाना खिलाने के बाद आराम करने का कह दिया और स्वयं दोनों बैग की देखभाल करने के लिए जाग रहा हूं कहकर मोबाइल फोन पर लग गया तकरीबन दो बजे सुधा उठी और बोली सुनिए अब आप आराम कर लीजिए सफर दो घंटे का ही बचा है में जाग रही हूं
ठीक है कहकर मोहन हो गया पता नही कब दोनों बच्चों को थपथपाते हुए सुधा को भी झपकी लग गई अचानक ट्रेन के झटके से चलने की आवाज से वह चौंक कर उठी देखा ट्रेन धीरे धीरे रफ्तार पकड़ कर स्टेशन छोड़ रही थी अचानक उसकी नज़र बाहर एक व्यक्ति की और गयी उसने देखा उसके पास भी बिल्कुल वैसा ही बैग था जैसा उसके पास है जिसमें वह मम्मी पापा भाई भाभी बच्चों के लिए कपड़े उपहार लेकर जा रही थी अचानक उसने घबराहट में अपने सीट के नीचे देखा …. अरे मेरा बैग … मतलब वो मेरा ही बैग था
जबतक वह मोहन को आवाज देकर बोली तबतक बाहर खिड़की से वह व्यक्ति ओझल हो गया था उसे समझ नहीं आ रहा था वो चलती ट्रेन का चेन खींचे या चीखें चिल्लाए क्या करें कैसे उस चोर को पकडे …
ट्रेन लगातार रफ्तार पकड़ चुकी थी वह फूट-फूटकर रोने लगी मोहन ने उसे चुप कराया ट्रेन की चेन खींची मगर उस चोर का कहीं पता नहीं लगा सुधा बैग और उसमें रखे समान का हिसाब किताब लगा रही थी तकरीबन दस हजार रूपए का नुक़सान हो गया था
तभी एक यात्री सुधा को सांत्वना देने के लिए बोला … बहनजी बुरा करनेवाले का कभी भला नहीं होता ऐसा करनेवाले का दस गुना नुकसान होता है
तभी मोहन का मोबाइल फोन एकबार फिर से बजा
जो बोएगा वहीं पाएगा तेरा किया आगे आएगा
सुख दुख है क्या फल कर्मों का
जैसी करनी वैसी भरनी जैसी करनी वैसी भरनी
अब सुधा को दुकानदार का चेहरा नजर आ रहा था और ईश्वर की वो चेतावनी जिसका अक्सर वो परिहास किया करती थी मगर आज उसका ही परिहास बनकर रह गया था…
एक प्ररेणादायक सुंदर रचना…🙏🙏🙏