ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
जिस ज़िन्दगी में तेरी मौजूदगी नहीं है
काटी है हमने फिर वो, दुनिया में जी नहीं है
माना बुरी नहीं है,लेकिन है जिसकी ख़्वाहिश
ये ज़िन्दगी तो हर्गिज़ वो ज़िन्दगी नहीं है
कितना भी भाईचारे के गीत गायें लेकिन
क्या आदमी का दुश्मन ही आदमी नहीं है
मिलते हैं हर किसी से बाहें पसारे यारो
अपनी किसी से दुनिया में दुश्मनी नहीं है
तुकबंदियाँ लगाना और चुटकुले सुनाना
कुछ और हो भले ही, ये शायरी नहीं है
फ़ाक़ाकशी में चाहे जीवन गुज़र रहा हो
पूछे कोई तो कहना, कोई कमी नहीं है
कैसे सफ़र कटेगा दुनिया में साथ उसके
जिस ज़िन्दगी से हीरा अब तक बनी नहीं है