ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
क्या बताऊँ कि तुमको क्या माना
मन के मंदिर का देवता माना
छोड़ा मुश्किल में डालकर दिल ने
जब भी नादान का कहा माना
मुझ में मौजूद हर घड़ी हो तुम
तुमको ख़ुद से नहीं जुदा माना
याद तहजीब भी रखें अपनी
है ज़माना बहुत नया माना
सोच तेरी बहुत ही छोटी है
पद तेरा है बहुत बड़ा माना
कह पराया नहीं गिला, लेकिन
तूने कब था बता सगा माना
जो भी हक़-बात पर रहा हीरा
उसको दुनिया ने सर-फिरा माना