ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
कोई भी वादा उससे निभाया नहीं गया
दुनिया से फिर भी अपना भरोसा नहीं गया
मायूस और भी हैं ज़माने में दोस्तो
छीना अकेले तुमसे ही मौक़ा नहीं गया
होती सुलह की बात भी कैसे बताइए
अपना ग़ुरूर दोनों से छोड़ा नहीं गया
सारे जहां की दौलतें देने के बाद भी
माता-पिता का क़र्ज़ चुकाया नहीं गया
यूँ तो चले गये हैं बहुत दूर हाँ मगर
दिल पर है अब भी आपका क़ब्ज़ा,नहीं गया
तन्हा लिखा है हर किसी का आख़िरी सफ़र
है कौन जो जहान से तन्हा नहीं गया