ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
दूर हो कर भी पास लगता है
दिल में उसका निवास लगता है
कुछ ख़लिश है ज़रूर सीने में
जो तू इतना उदास लगता है
दौर ए हाज़िर में हर बशर को ही
आ रहा झूठ रास लगता है
आज फैशन का हाल है कुछ यूँ
आदमी बेलिबास लगता है
कोई शिकवा-गिला नहीं करता
दिल मेरा ग़म-शनास लगता है
अपना महबूब हर किसी को ही
सारी दुनिया से खास लगता है
अब भी दुनिया पे है यकीं हीरा
हो चुका बदहवास लगता है