ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
जो भला किया, जो बुरा किया कभी बैठ, सबका हिसाब कर
तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़े जहां, खुली ख़ुद को जग में किताब कर
किसी लोभ में, किसी मोह में, किसी क्रोध में, किसी क्षोभ में
जो मिली ख़ुदा से है ज़िन्दगी उसे ख़ुद न पगले ख़राब कर
मेरी आशिकी का सिला सनम कभी इस तरह से भी कर अता
सभी तोड़ शर्म की बंदिशें,कभी रुख़ से दूर नक़ाब कर
कोई नाम दिल पे लिखा भी ले, कोई मीत जग में बना भी ले
जो लगे है ख़ार सी ज़िन्दगी उसे चाहतों से गुलाब कर
तेरी नेकियाँ ही दिलाएँगी, तेरी याद सबको जहान में
नहीं साथ जाएगा धन तेरे जो रखा तिजोरी में दाब कर