ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
जिसे सुकून का लम्हा कभी नसीब न हो
कोई जहान में ऐसा कभी ग़रीब न हो
बहुत ज़रूरी है हम ख़ुद में झाँक कर देखें
कोई भी दिल से हमारे अगर क़रीब न हो
दुआएँ माँगता रहता हूँ रब से शामों-सहर
मेरी तरह कोई दुनिया में बदनसीब न हो
वो आदमी भी कोई आदमी है दुनिया में
कोई रक़ीब न जिसका कोई हबीब ने हो
दुआएँ औरों के मरने की माँगने वालो
तुम्हारे सर पे भी रक्खा कहीं सलीब न हो
निकल पड़े हैं सफ़र पर मगर है डर हीरा
रह ए वफ़ा में कोई हादसा अजीब न हो