अपने खून पसीने को निचोड़ कर अन्न पैदा करने वाला किसान कितना मजबूर
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अन्न दाता कितना मजबूर और लाचार हो गया है जो दूसरे को रोटी देने वाला किसान अपने ही देश में बेगाना हो गया जो आज उसको अपने हक के लिए रोड पर उतरना पड़ रहा है अपनी जान की आहुति तक देने को मजबूर किसान दूसरो को जीवन देने वाला आज किसान अपनी ही जिंदगी नही बचा पा रहा है किसान करे तो काय करे कभी मौसम की मार कभी बाजार की मार ओर अब सरकार की मार हर कोई बस इनको को ठगना चाहता है और किसी को भी इनकी कोई परवाह नही हर चीज का को दाम बड़ ता रहता है सरकारी मुलाजिम की महगायी भत्ता पर किसानों की किसी चीज का भाव आखिर कहे इनके साथ नही बढ़ाया जाता