विचार
*भारत में क्या खतरे में पड़ गया है लोकतंत्र?*
*एक यूट्यूबर की बात पर क्यों मचा है हल्ला*
भारत में लोकतंत्र उत्तरोत्तर परिपक्व हो रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए धारा 356 का दुरुपयोग बंद होना है. देश में न्यायपालिका अब भी स्वतंत्र है, जो सुदृढ़ लोकतंत्र का परिचायक है. राज्यों के चुनाव में कई जगह बीजेपी हार रही है. मीडिया और सोशल मीडिया पर केंद्र की सत्ता संभाल रही भाजपा को खुलकर कहा-सुना जाता है.
*मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों ही ने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल नहीं किया*
*संयम श्रीवास्तव … नई दिल्ली*
क्या देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है? सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर पिछले 2 दिन से जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है. हालांकि विपक्ष में रहने वाले दल हमेशा से सत्ताधारी पार्टी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि देश में लोकतंत्र खतरे में हैं. पर आश्चर्यजनक ये है कि कभी भी यह मुद्दा इतना बड़ा नहीं बना कि आम लोग भी बहस में शामिल हो जाएं. कांग्रेस के ट्वीटर हैंडल हों या पार्टी के नेता अक्सर इस तरह का आरोप लगाते रहे हैं पर कभी भी लोकतंत्र का खतरे में पड़ गया है इसको लेकर आम लोगों में बहस नहीं शुरू हुई. पर एक यू ट्यूबर जिस पर आम आदमी पार्टी के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगता रहा है ने इस मुद्दे को लेकर एक वीडियो बनाया तो देश का लोकतंत्र वास्तव में खतरे में पड़ गया लगता दिख रहा है. सोशल मीडिया इस समय इसी बात की चर्चा कर रहा है. भारतीय लोकतंत्र के तेज़ी से तानाशाही में तब्दील होते जाने पर ध्रुव राठी के इस वीडियो को 48 घंटों में ही करीब 1 करोड़ लोग देख चुके थे. इस वीडियो को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है. कांग्रेस नेताओं ने भी इस वीडियो को ट्वीट करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है.
फिलहाल भारत में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो देश में लोकतंत्र और मजबूत ही हुआ है. भारत ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अलावा भी देश में 5 प्रधानमंत्रियों का शासन देखा है. पर लोकतंत्र हर सरकार में उत्तरोत्तर मजबूत ही होता गया है. यूट्यूबर ध्रुव राठी को दरअसल वर्तमान समस्याओं को देखकर ऐसा लग रहा है कि देश में बहुत जल्दी लोकतंत्र खत्म हो जाएगा. शायद ये उनकी उम्र का तकाजा है या भारत की राजनीतिक इतिहास के ज्ञान की कमी है जो हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक चमक की बिखेर को वह देख नहीं पा रहे हैं.
*1-भारत में न्यायपालिका अभी भी पावरफुल है*
लोकतंत्र का सबसे प्रमुख आधार न्यायपालिका होती है. भारत में न्यायपालिका अभी भी पूरे रुतबे के साथ काम कर रही है. हाल ही के कई मामले सबूत हैं जिसमें न्यायपालिका ने सरकार के खिलाफ फैसले दिए हैं. अगर देश में किसी तानाशाह का शासन होता तो क्या ऐसा हो सकता था कि चंडीगढ़ मेयर चुनाव को रद्द करके फिर से काउंटिंग कराई जाती? इलेक्टोरल बॉन्ड पर जिस तरह कोर्ट ने सरकार को घेरा और कानून को रद्द कर दिया क्या यह किसी अलोकतांत्रिक देश में संभव है? जब तक देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता है ऐसी आशंका निर्मूल ही है कि लोकतंत्र खतरे में है.
*2-लोकतंत्रिक तरीके से सरकारें चुनी जाती हैं, जनता गुस्सा होती है तो सरकार बदल देती है*
देश में लोकतांत्रिक तरीके से सरकारें चुनी जा रही हैं. 2024 में एनडीए सरकार के आने के बाद से विपक्ष ने राज्यों में जितनी बार सरकार बनाई है उनकी संख्या कम नहीं है.आज भी 2024 के लिए बीजेपी अगर साम दाम दंड भेद सभी का उपाय कर रही है तो मतलब यही है कि चुनाव जीतना है. जनता को खुश करने के लिए 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है. राम मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है.हर वो काम किया जा रहा है जिससे लोकसभा चुनावों में जीत हासिल किया जा सके.
*3-प्रेस की स्वतंत्रता नहीं होती तो क्या लोकतंत्र की हत्या होने की बात कोई कह पाता?*
प्रेस की स्वतंत्रता नहीं होती क्या विदेश में भी बैठकर देश के पीएम को तानाशाह बताया जा सकता था? यही नहीं आए दिन राजनीतिक दल के नेता ही नहीं छोटे-छोटे यूट्यूबर भी देश के चुने हुए प्रधानमंत्री की तुलना हिटलर से कर रहे हैं. कोई अपने देश के पीएम को अनपढ़ गवांर लिखता है तो कोई उनकी निजी जिंदगी को जबरन सोशल मीडिया पर लिखता रहता है. क्या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं रहती तो चंडीगढ़ मेयर कांड का सीधा प्रसारण हम देख पाते? टीवी चैनलों के जरिए ही तो यह मामाला आम जनता तक पहुंचा. क्या यूपी में पेपरलीक पर मीडिया ने सरकार को झुकाने का काम नहीं किया?
*4-प्रोटेस्ट को पहले भी दबाया जाता रहा है, रामुपर तिराहा कांड में क्या हुआ था याद है न*
यूट्यूबर का दावा है कि देश में प्रोटेस्ट को दबाया जाता है. 2022 का किसान आंदोलन तो नहीं भूला होगा किसी ने. इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करके तीन कृषि विधेयकों को वापस करवा लेना क्या किसी अलोकतांत्रिक देश में संभंव हो पाता? देश में पहले भी कई किसान आंदोलन हुए हैं. कितने ही किसानों की पुलिस फायरिंग में जान गई है. शायद ध्रुव राठी को पता नहीं होगा. आंदोलनों को किस तरह दबाया जाता है ध्रुव राठी को किसी उत्तराखंडी से पूछना चाहिए. रामपुर तिराहा कांड में उत्तराखंड के शांतिपूर्ण आंदोलनकारी जो दिल्ली कूच कर रहे थे उन्हें बसों से उतार कर मारा गया था. कई लोगों की जान गई. मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए इस घटना की बाद में जांच हुई, जांच रिपोर्ट में सामने आया था कई दर्जन महिलाओं को बसों से घसीट कर खेतों में रेप किया गया था. और रेप करने वाले पुलिसकर्मी ही थे. आज उस घटना को बीते कई दशक हो गए हैं.
*5-वन नेशन वन पार्टी की बात छलावा है, अब तो पूर्ण बहुमत वाली पार्टी गठबंधन सरकार चलाती है*
देश में एक समय कांग्रेस पार्टी का ही राज था . 1977 से 1980 के बीच में पहली बार कुछ दिनों के लिए पहली बार एक गैरकांग्रेसी सरकार का गठन हुआ पर ज्यादा दिन नही चल सका. कांग्रेस के नेता देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा. देश की जनता यह मानकर चलती थी. देश पर राज करने की कूवत केवल कांग्रेस में ही है. फिर 1989 में भी विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक गैरकांग्रेसी सरकार बनी पर वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. पर लोकतंत्र धीरे-धीरे मैच्योर हो रहा था. 1995 के बाद फिर एक बार देश में राजनीतिक क्राइसिस की स्थिति पैदा हुई. फिर धीरे-धीरे देश ने गठबंधन सरकार चलाने की प्रक्रिया डिवेलप कर ली. आज स्थिति ऐसी है कि पूर्ण बहुमत होने के बावजूद भी सहयोगी पार्टियों को सत्ता भागीदारी से दूर करने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक दल में नहीं है.
*6- हार्स ट्रेडिंग*…….
भारती लोकतंत्र ही नहीं दुनिया भर में हार्स ट्रेडिंग की बात होती है. भारत में भी आया राम गया राम के किस्से बहुत पुराने हैं. पहले राज्य सरकारों को चलाने के लिए खरीद फरोख्त होती रही है. हरियाणा में पूरी पार्टी के बदल जाने की कहानी हम जानते ही हैं. पीवी नरसिम्हा राव देश के पहले और आखिरी पीएम थे जिन पर हार्स ट्रेडिंग का सीधा आरोप लगा. पर शायद जब इतिहास लिखा जाएगा तो उन्हें हीरो के तरीके से पेश किया जाएगा जो देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए ये सब किया था. देश में उस समय एक स्थिर सरकार की जरूरत थी . जिसके लिए नरसिम्हा राव ने जो कुछ भी उनसे बन सका उन्होंने किया.
*7- ईडी और सीबीआई का दुरुपयोग*
जहां तक ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग से अगर देश का लोकतंत्र खतरे में पड़ने मे लगे तो बहुत पहले ही खत्म हो गया होता. यूपीए सरकार के दौरान सरकार को बचाए रखने के लिए और कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराने के लिए मुलायम सिंह परिवार पर आय अधिक संपत्ति का शिकंजा कसा गया. मुलायम सिंह यादव परिवार के एक छोटे से बच्चे तक को नहीं बख्शा गया.
*8-चुनी हुई सरकारों का गला घोटना यह होता है*
आजादी के बाद से ही चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करने के लिए केवल देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय में ही छह बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया. उसके बाद कांग्रेस ही नहीं पहली गैरकांग्रेसी सरकार ने भी चुनी हुई सरकारों का इस कानून के जरिए गला घोटने का कार्य किया. इंदिरा गांधी ने 1967 और 1969 के बीच प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए अनुच्छेद 356 का सात बार इस्तेमाल किया. अपने दूसरे कार्यकाल 1970 से 1974 के बीच जब इंदिरा प्रधानमंत्री रहीं तब 19 बार राष्ट्रपति शासन लगाया. 1977 के आम चुनाव में इंदिरा को सत्ता से बेदखल करने के बाद आई जनता पार्टी सरकार ने कांग्रेस के पदचिह्नों पर चलते हुए 12 राज्यों की कांग्रेस सरकारों पर अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर एक रिकॉर्ड बना दिया.
जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं तो उन्होंने 17 फरवरी, 1980 को एक ही दिन में सात राज्य सरकारों को भंग कर दिया जो एक अलग ही रिकॉर्ड है.उसके बाद भी ये दौर खत्म नहीं हुआ. पर देश का लोकतंत्र अब मैच्योर हुआ है. यूपीए सरकार और उसके बाद की मोदी सरकार अब 356 का इस्तेमाल करीब-करीब बंद कर दिया है. मनमोहन के कार्यकाल में केवल 12 बार और नरेंद्र मोदी ने केवल 10 बार इस कानून का इस्तेमाल किया है. मतलब सीधा है कि लोकतंत्र देश में और मजबूत हो रहा है.