अठन्नी के घाटे में लाखों का मुनाफा!
सुल्तानपुर। मंहगाई के इस दौर में आज भले ही 50 पैसे का कोई महत्व न हो पर लोक निर्माण विभाग में टेण्डर मैनेजमेण्ट के खेल में अठन्नी का अहम रोल है। अठन्नी का घाटा सही और मुनाफा लाखों में यह गोरख धन्धा लो0नि0वि0 में धड़ल्ले से चल रहा है।दिसम्बर 2023 के आखिरी सप्ताह से जनवरी 2024 के अन्तिम सप्ताह तक केवलल प्रान्तीय खण्ड में 73 कार्यों के लिए करोड़ों रूपये के टेण्डर खोले गये। जिनमें अठन्नी का नुकसान कर सरकार को करोड़ों का चूना भी लगाया गया। विधायकों को निधि के रूप में प्रतिवर्ष 5 करोड़ रूपये विकास कार्यों के लिए मिलते हैं, जिससे वे अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवा सकें। पूर्व में जनप्रतिनिधि एडवांस कमीशन के लोभ में ज्यादातर निधि विद्यालयों को दे देते थे, लेकिन अब सरकार ने केवल 25 प्रतिशत ही विद्यालयों को देने का नियम बना दिया है। विधायक निधि पर तो जनप्रतिनिधियों का मालिकाना हक जग जाहिर है, जिसे वे अपने हिसाब से अपने चहेतों से अपने चिन्हित क्षेत्रों में कार्य करवाते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न विभागों में वे शासन को प्रस्ताव भेजते हैं। इन प्रस्तावों के तहत होने वाले विकास कार्यों में भी मैनेजमेण्ट चल रहा है। टेण्डर मैनेजमेण्ट के खेल को समझना हर किसी के बस की बात नहीं है, तो चलिए हम आपको बताते हैं कि मैनेजमेण्ट का खेल खुलेआम कैसे खेला जा रहा है। इस पूरे गोरखधन्धे को जन प्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त है। जनता के रहनुमाओं के प्रबन्धक न केवल पीडब्लूडी बल्कि अन्य कई विभागों से निकलने वाली निविदाओं पर भी डाका डाल रहे हैं। जनप्रतिनिधियों के प्रबन्धक निविदा प्रकाशित होते ही यह तय कर देते हैं कि कौन सा कार्य किसको देना है,जिसके बदले में उन्हें मोटी रकम मिलती हैं। कार्य पाने वाले लोग दो टेण्डर डालते हैं। जिनमें एक विभागीय दर या उससे अधिक होता है, और दूसरा विभागीय दर से केवल 50 पैसे कम दाम पर डाला जाता है। इस तरह बिना शोर शराबे के ठेकेदारों को आसानी से कार्य हासिल हो जाता है, यदि टेण्डर प्रक्रिया में कम्पटीशन हो तो सरकार को लाखों का फायदा हो सकता है, लेकिन मैनेजमेण्ट के आगे प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टालरेंस की नीति फेल नजर आ रही है। सत्ता के दबाव से दबे विभागीय अफसर इस संबंध में मुह खोलने को तैयार नहीं है।