Friday, November 22, 2024
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सफलता मेहनत से मिलती है जैसे गोपाल नमकीन

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*सारी मुसीबतें लांघकर बनाया करोड़ों का कारोबार. …. और अब आई शुभ घड़ी*

गोपाल नमकीन आज लगभग 1,400 करोड़ रुपये की कंपनी है. इसके फाउंडर बिपिनभाई विट्ठलभाई हदवानी कभी साइकिल पर घूम-घूमकर नमकीन बेचते थे. उन्होंने अपने पिताजी से 4,500 रुपये लिए और वहीं से अपना सफर शुरू किया. 4,500 रुपये से 1,400 करोड़ का एंपायर खड़ा करने की कहानी काफी दिलचस्प है.

*मलखान सिंह*

गोपाल नमकीन का आईपीओ खुल चुका है. आज अप्लाई करने का दूसरा दिन है. इसके बारे में काफी कुछ देख-पढ़ लिया होगा. इस खबर में हम आईपीओ के बारे में बात न करके गोपाल नमकीन कंपनी के शुरू होने से लेकर अब तक की कहानी बताने वाले हैं. इस कंपनी को जीरो से हजारों करोड़ की कंपनी बनाने वाले शख्स का नाम बिपिनभाई विट्ठलभाई हदवानी है. वही इस कहानी के मुख्य पात्र भी हैं. एक समय था जब बिपिनभाई ने साइकिल पर लादकर नमकीन बेचा. धीरे-धीरे धंधे को बढ़ाया और लगभग 1,400 करोड़ रुपये के मूल्य वाली कंपनी बना दी. कंपनी की वित्तीय स्थिति ऐसी है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने इसके इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग को भी हरी झंडी दिखा दी. अब कंपनी 80 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाती है, जिसमें चिप्स से लेकर नूडल्स और गुजराती नमकीन तक शामिल हैं.

गुजरात में भादरा नाम का एक गांव है. इस गांव में एक छोटी-सी दुकान थी, जो बिपिनभाई विट्ठलभाई हदवानी के पिता की थी. स्कूल से लौटने के बाद बिपिनभाई अपनी दुकान से नमकीन उठाकर साइकिल से गांव में बेचने निकल जाया करते थे. फेरी के बाद भी अगर समय बचता तो पिता के साथ काम में हाथ बंटाते थे. उनके पिता भी बड़े समझदार बिजनेसमैन थे. अपने पिता की दो बातों को उन्होंने अपने बिजनेस की नींव बनाया, और उसी पर आगे बढ़ते हुए गोपाल नमकीन को वहां तक पहुंचा दिया, जहां पहुंचने के बारे में शायद ही उन्होंने कभी सोचा होगा. ज्यों-ज्यों यह कहानी आगे बढ़ेगी, आप उनके पिता द्वारा दिए गए सूत्रों को भी जानेंगे. सूत्र ऐसे हैं, जो फूड बिजनेस में काम करने वाले लोगों के काम के हैं.

*4,500 रुपये से शुरू हुई बिजनेस की जर्नी*

दुकान पर सब ठीक चल रहा था, मगर एक दिक्कत थी. दुकान पर केवल एक ही गांव के लोग आते थे, और साइकिल से भी उसी गांव में माल पहुंचाया जा सकता था. बिजनेस को बड़े स्तर पर ले जाना है तो अपना दायरा भी बढ़ाना होगा. इसी सोच के साथ 1990 में बिपिनभाई हदवानी ने सोचा कि राजकोट जाकर धंधा जमाया जाना चाहिए. बिपिन के पिताजी को लगा कि शायद मजाक के मूड में है. बिपिन ने खुद एक इंटरव्यू में कहा, “उन्होंने मुझे 4,500 रुपये दिए, और उन्हें लगता था कि मैं ये पैसे खराब करके घर लौट आऊंगा.” लेकिन हदवानी के पिता को निराश होना पड़ा. हदवानी राजकोट में ही जम गए और अपने एक रिश्तेदार के साथ उसी साल एक छोटा-सा नमकीन वेंचर शुरू कर दिया. ब्रांड का नाम रखा गया- गणेश.

अगले 4 वर्षों तक गणेश ने अच्छी ग्रोथ की. पर, कहते हैं ना कि बिजनेस करें तो अकेले, पार्टनरशिप ज्यादा समय तक चलती नहीं. बिलकुल यही हुआ बिपिनभाई के साथ भी. जिस रिलेटिव के साथ काम शुरू किया था, उसके साथ मतभेद हो गए और फिर उन्होंने बिजनेस से अलग होने का फैसला कर लिया. हदवानी बिजनेस के खेल में अग्रेसिव थे और ज्यादा कमाई के लिए कारोबार को बढ़ाना चाहते थे. वे नए उत्पाद लॉन्च करना चाहते थे और बिजनेस को स्केल-अप करना चाहते थे. लागत बढ़ने पर भी वह कीमत को स्थिर रखना चाहते थे. इसके पीछे उनके पिता द्वारा दिया गए एक सूत्र था- ज्यादा पैसा कमाना है तो बिजनेस बढ़ाओ, कीमत मत बढ़ाओ. बिजनेस पार्टनर के साथ मतभेद का एक कारण यह भी था. यह बात थी 1994 की. पार्टनरशिप टूटी गई, और इस तरह बिपिनभाई का पहला वेंचर खत्म हो गया.

*फिर पैदा हुआ “गोपाल*…….

1994 में जब वे गणेश से अलग हुए तो उन्हें 2.5 लाख रुपये प्राप्त हुए. यह उस बिजनेस में उनका हिस्सा था. इस पैसे से उन्होंने राजकोट में एक घर खरीदा और उसी साल (1994 में ही) अपनी पत्नी के साथ मिलकर गोपाल स्नैक्स की स्थापना की. उनकी पत्नी का नाम था- दक्षाबेन . दोनों ने अपने घर पर ही नमकीन बनाना शुरू किया. फिर से पूरा खेल वहीं से शुरू हुआ, जहां से 4 साल पहले 1990 में हुआ था, मतलब जीरो से.

इसके साथ ही आपको यह भी जान लेना चाहिए कि अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली दक्षाबेन को 2020 की कोटक वेल्थ हुरुन लिस्ट ऑफ इंडिया की टॉप 100 वेल्थी महिलाओं की लिस्ट में जगह दी गई.

*पिताजी की दूसरी सीख बनी कंपनी का मूलमंत्र*

बिपिनभाई हदवानी ने अपने पिता से सीखा था कि, अपने ग्राहकों को वही बेचो, जो आप खुद खाना चाहते हैं. इसी सीख को कंपनी का मूलमंत्र भी बनाया गया है. कंपनी ऐसी प्रोडक्ट बनाती है, जिसे कि बनाने वाले खुद और कंपनी के मालिक खुद खा पाएं. इसी सीख के साथ उन्होंने एक गुजराती स्नैक चवानु बनाया. इसे केवल एक रुपये की कीमत पर बेचा गया.

फिर से बिजनेस शुरू करना और फिर उसे स्थापित करना हमेशा से मुश्किल रहा है. हदवानी के लिए भला आसान कैसे होता? लोग “गणेश” को जान गए थे, मगर बिपिनभाई को नहीं पहचानते थे. उनका नया प्रोडक्ट “गोपाल” एकदम नया था, जिसे गुजरात के लोगों ने अभी तक चखा भी तक नहीं था. गुजरात और भारत के किसी भी राज्य के लोग विदेशियों की तरह नहीं होते, जो सब चीजें ट्राय करना चाहते हैं और जो अच्छा लगता है, उसके लिए लॉयल हो जाते हैं. देसी लोग इसके उलट हैं. उन्हें एक बार जो अच्छा लगता है तो उसी के साथ बंध जाते हैं और फिर दूसरी चीजों को ट्राय करना भी पसंद नहीं करते.

*हदवानी ने अपनाया पुराना फॉर्मूला*..

बिपिनभाई हदवानी ने प्रोडक्ट बाजार में उतार दिए. क्वालिटी को एकदम बढ़िया रखा. खूब मेहनत की, मगर सेल उठ नहीं पा रही थी. कम सेल उन्हें परेशान कर रही थी. उन्हें अपना पुराना फॉर्मूला याद आया. बिपिन ने अपना साइकिल उठाया और राजकोट में घूमना शुरू कर दिया. इस दौरान उन्होंने छोटे दुकानदारों, रिटेलरों और डीलरों से संपर्क किया और बाजार की नब्ज टटोली. उन्होंने प्राइस में फेरबदल नहीं किया, मगर क्वालिटी दूसरों से बेहतर देने की कोशिश की.

उनकी पत्नी दक्षा घर पर ही प्रोडक्शन पर ध्यान देती थीं और बिपिन बाजार में अपने प्रोडक्ट को फैलाने की कोशिश कर रहे थे. लगभग 4 साल तक (1994-1998 तक) दोनों ने दिन-रात एक कर दिए. आखिर, फल तो मिलना ही था. मांग और सेल दोनों बढ़ने लगीं. मांग बढ़ी तो राजकोट से कुछ दूरी पर एक जमीन का टुकड़ा खरीद लिया गया, जहां से मैन्युफैक्चरिंग का काम होने लगा.

*गाठिया ने कर दिया मालामाल*….

गुजराती स्नैक गाठिया ने “गोपाल” को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करने का काम किया. कंपनी के सेल 1 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. बिजनेस चल निकला तो एक और समस्या आ गई. शहर के बाहर लगाया गया मैन्युफैक्चरिंग प्लांट अब सिरदर्द बन गया था. वहां से शहर तक माल पहुंचाने में काफी समय लग जाता था. माल ढुलाई की लागत अलग से. लगभग 10 साल तक उन्होंने वहीं से काम चलाने की कोशिश की, मगर इस स्थिति को और नहीं खींचा जा सकता था. बचत कम हो रही थी और सिरदर्दी अधिक थी.

2008 में उन्होंने अपना प्लांट बंद कर दिया. उन्होंने ठाना कि बैंक से लोन लेकर शहर में ही एक प्लांट लगाएंगे और उन्होंने ऐसा किया भी. फोर्ब्स से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हम भारी कर्ज में थे. नया प्लांट लगाना बहुत महंगा रिस्क था, जिसे मैं ले उठाने जा रहा था.” साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इसी वक्त उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर गोपाल गृह उद्योग से गोपाल स्नैक्स रख लिया.

*अपने साथ किस्मत लाया नया प्लांट*.

2008 में उन्होंने अपना प्लांट राजकोट शहर में लगाया. इसके 4 साल के बाद ही 2012 में गोपाल स्नैक्स ने 100 करोड़ रुपये की ब्रिकी का आंकड़ा छू लिया. यह किसी भी बिजनेसमैन के लिए मील के पत्थर जैसा होता है. गोपाल ने लोकल टेस्ट के हिसाब से अपने स्नैक्स की शृंखला बढ़ाना जारी रखा.

समय बदला तो लागत भी बढ़ती गई. कई बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाईं, लेकिन बिपिनभाई ने कीमतें भी वहीं की वहीं रखीं और क्वालिटी से भी समझौता नहीं किया. इसी का नतीजा था कि अगले 6 सालों में गोपाल स्नैक्स की सेल 620 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. यह उनका 2017 का रेवेन्यू था. अब तक उन्होंने विज्ञापन या मशहूरी पर एक नया पैसा भी खर्च नहीं किया था. कट टू 2021. इस वित्त वर्ष में कंपनी ने 1128 करोड़ रुपये की सेल की. बिपिनभाई ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और राजस्थान समेत 10 राज्यों में अपने उत्पादों को पहुंचा दिया.

*नंबर 2 रहने में भी बुराई नहीं!*

जहां-जहां गोपाल स्नैक्स के नमकीन पहुंचते हैं, वहां के लोकल टेस्ट में उनका मुकाबला नहीं. मगर गुजरात के ही बालाजी वैफर्स बाजार में एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर पहले से ही मौजूद थे और उनका चिप्स नंबर 1 था. बिपिनभाई ने सोचा कि यदि वे वैफर्स बनाने में दम लगाएंगे तो 4 हजार करोड़ के वैल्यूएशन वाली कंपनी से जीत पाना आसान नहीं होगा.

ऐसे में बिपिनभाई विट्ठलभाई हदवानी ने केवल उन उत्पादों पर फोकस किया, जिन पर बालाजी वैफर्स का बहुत ज्यादा ध्यान नहीं था. उन्होंने पापड़, रस समेत 80 प्रॉडक्ट लॉन्च किए, जहां पर बालाजी वैफर्स ग्रुप बहुत मजबूत नहीं था. फिलहाल, गोपाल स्नैक्स रोजाना 1 करोड़ से अधिक पैकेट का उत्पादन करता है और 2023 तक उनकी सेल 1,394 करोड़ तक पहुंच गई थी.