माता पिता जैसा कोई धर्म नही
Top Banner
जहाँ सजदा हो बुज़ुर्गों का,
वहाँ की तहज़ीब अच्छी है।
जहाँ लांघे न कोई मर्यादा,
उस घर की दहलीज़ अच्छी है।।
घर बैठे ही, पूरी हो जायेगी यात्रा,
चार धामों की…..
परिक्रमा *मात-पिता* की कर लो,
गजानन की तरक़ीब अच्छी है….परिक्रमा जे दो अर्थ है उनकी सेवा में घूमते रहना और उनके आसपास ही रहना जब भी फुर्सत मिले चरण तन सेवा करना।
*माता पिता की जय हाे*🪷🙏🏻🪷