जिला अधिकारी जौनपुर के आदेश पर जांच ? मतलब ढाक के तीन पात
जौनपुर वैसे जनपद जौनपुर के जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह अपने कुशल एवं न्याय प्रियता के कारण अक्सर समाचार पत्र पत्रिकाओं एवं इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं, इस समय जनपद के तमाम समाचार पत्र एवं पोर्टल में कुछ लोगों ने एक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करना आरंभ कर दिया है कि उनके द्वारा प्रकाशित खबरों का असर इस कदर हुआ की जिलाधिकारी महोदय भ्रष्टाचार के मामले को संज्ञान में लेकर एक टीम गठित कर दिया है जो अपनी रिपोर्ट जांच कर अगले 10 दिन में जिलाधिकारी महोदय को सौंपेंगे इस तरह की खबरों को पढ़कर बड़ा अजीब लग रहा है कि अपने ही कलम से आज के पत्रकार तथा समाचार पत्र के अन्य पदाधिकारी अपनी ही वाहवाही करने में लगे हुए हैं अपनी वाहवाही में यह भूल जाते हैं की जिलाधिकारी महोदय द्वारा किए गए आदेश पर बनाई गई जांच की टीम पहली बार नहीं बनाई गई है इसके पहले अनगिनत बार जिलाधिकारी महोदय ने मामले को संज्ञान में लेकर जांच की टीम गठित किया है परंतु आज तक किस जांच की टीम ने जांच कर सही रिपोर्ट जिलाधिकारी महोदय को सौंपा है ? और फिर जांच रिपोर्ट को संज्ञान में लेकर क्या कार्रवाई की गई है? इस बात का किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं किया समाचार पढ़ने पर बहुत ही अजीब लगता है जब कोई यह लिखता है कि हमारे खबर का असर है कि इस तरह की जांच की टीम गठित की गई खबर का क्या असर होगा जबकि जिले के तमाम ग्राम सभा के तमाम पीड़ितों द्वारा जिलाधिकारी महोदय के समक्ष लिखित शपथ पत्र के साथ शिकायत किया जाता है और जिलाधिकारी जौनपुर के द्वारा विधिवत आदेश करते हुए किसी एक जांच अधिकारी को जांच करने के लिए नियुक्त किया जाता है परंतु जांच अधिकारी नियुक्त करने के बाद फिर वही ढुलमुल रवैया होते हुए जांच वहीं आकर रुक जाती है जहां से पीड़ित ने अपना आवेदन किया था क्योंकि जब तक जांच की रिपोर्ट आती है और जिलाधिकारी महोदय उसको संज्ञान में लेकर कुछ कार्यवाही करते तब तक मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है जिसका लेखक के पास प्रत्यक्ष प्रमाण है विगत दिनों जनपद जौनपुर के विकासखंड सिकरारा अंतर्गत ग्राम सभा बढौली नोनीयान निवासी दीप चंद यादव एवं चिंता देवी द्वारा लिखित शपथ पत्र के साथ ग्राम सभा की विकास में ग्राम प्रधान द्वारा कराए गए तमाम कामों की बिंदुवार कमियों को बताते हुए अवैध तरीके से जनता के धन को लूटने की लिखित शिकायत के साथ यह भी बताया था कि किस तरह किसी के जॉब कार्ड पर दूसरे की तस्वीर लगा कर फर्जी तरीके से ग्राम विकास के पैसे भुगतान कराया जा रहा था जिलाधिकारी महोदय द्वारा जिला पंचायत राज अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त किए पर्यंत जिला पंचायत राज अधिकारी ने अपना पल्ला झाड़ते हुए जिला प्रशिक्षण अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया और इसी गोलमाल में शिकायतकर्ता को बिना बताए जांच की टीम ग्रामसभा में पहुंची और उन्हीं व्यक्तियों के बीच में जांच की गई जिनके खिलाफ शिकायत की गई थी परंतु आज तक जांच रिपोर्ट का कोई पता नहीं सारे प्रकरण को देखने से यह लगता है कि जनपद के समस्त कर्मचारी समस्त विभागीय अधिकारी सिर्फ लॉकडाउन के समय जिलाधिकारी महोदय की एक एक शब्द के आदेश को मानते हैं कि कब दुकान बंद करनी है ? कब दुकान खोलनी है ?किस का चालान करना है? किस पर कब एफ आई आर करना है? अगर lock-down की प्रकरण को हटाकर देखा जाए तो जिलाधिकारी महोदय के आदेश का यदि ईमानदारी से पालन करें तो जिले की जनता राहत महसूस करेगी परंतु कोई भी अधिकारी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाने को तैयार नहीं है जिसका प्रमाण जांच के बाद लगने वाली रिपोर्ट स्वयं ही बयां करती है जो शिकायतकर्ता को दोबारा पता नहीं चलता कि उसके द्वारा की गई शिकायत में क्या रिपोर्ट आई है और उस रिपोर्ट पर क्या कार्यवाही की जाएगी!