पिता के साये में पलने वाला उपवन कहलाता है
रवि यादव
अपने खून पसीने से पौधों को सींचा करते हैं।
पाल-पोष कर धीरे-धीरे बड़ा बगीचा करते हैं।।
जिसके ऋणी हर एक कली,हर पत्तें,डाली होते हैं।
हरे भरे हर बाग की असली वजह माली होते हैं ।।
मिले बीज़ मिट्टी में अपना रंग बदलने लगता है,।
होकर के अंकुरित चूमने नभ को चलने लगता है।।
अलसित चाल हुआ करती है उसके बढ़ने चढ़ने की,।
मगर एक दिन अवसर पाकर अवश्य फलने लगता है।।
धूप सूर्य से,वायु प्रकृति से,नमीं जमीं से पाते हैं।
जिनको जितना बढ़ाना होता है उतना बढ़ जाते हैं।।
रखवाली ना माली करते तो क्या बड़े नहीं होते? ।
जड़ों से अपने जकड़ के धरती को ये खड़े नहीं होते?।।
महक है जिनकी फितरत उनको दूजे का ऐतबार ही क्या? ।
पौधों के पालन-पोषण में माली का किरदार ही क्या? ।।
जो ऐसा कुछ सोच रहे हैं गलत नहीं कुछ सोच रहे।
क्योंकि यह उनकी ही सोच है,जो माली को नोच रहे।।
माली सदा सजग है रहता तूफानों से लड़ने को।
जीत जानते अपना, अपने बाग पे असर न पड़ने को।।
असर न आंधी के होने को मन का मजा समझते हैं।
फूलों के मुरझाने भर को स्वत्व की सजा समझते हैं।।
कर्म के सही नतीजे पानें खातिर अर्पण होते हैं।
बाग असल में माली के मेहनत के दर्पण होता हैं।।
बदनसीब जिन बागों ने माली का प्यार नहीं पाया।
मेघों ने जो दिया वही बस,फिर जलधार नहीं पाया।।
अपने हिस्से की चीजें ही मिली न अपने हिस्से में।
हृदय विदारण की क्षमता है जिनके कड़वे किस्से में।।
दिया धूप सूरज ने इतना बीज खेत में भूना मिला।
नमीं ज़मीं की तुलना में पौधा प्यासा चौगुना मिला।।
उपवन नहीं,प्रकृति आश्रित पेड़ों को जंगल कहते हैं।
जहां की पथरीली धरती में विषधर बिच्छू रहते हैं।।
बिखरे पत्ते पत्ते रहते,सूखी सूखी डाली है।
आंधी से उजड़े वृक्षों की जगह खाली खाली है।।
दुर्गन्धित माहौल यहां सन्नाटे छाए रहते हैं।
या फिर स्वान शशक के पीछे धाए धाए रहते हैं ।।
जंगल और उपवन को देखो संबंधों के तत्व को समझो ।।
बाग- बगीचों,कलियों, फूलों माली के महामहत्व को समझो ।।
मानव जीवन में वह माली “पिता” हुआ करतें हैं ।
हमको ज़िन्दा रखने खातिर दिनों-रात मरतें हैं।।
पिता के साये में पलने वाला उपवन कहलाता है।
बिना पिता के ये जीवन जंगल बन कर रह जाता है।।