भादो के महीने में चल रहा मंदी का दौर
कहते हैं, “कभी भादो के महीने में मनुष्यों को तो रोजी – रोटी की किल्लत होती ही थी, सुदूरवर्ती क्षेत्रों व आसमान की ऊँचाइयों तक को तय करने वाले पक्षियों को भी दाने मयस्सर नहीं हो पाते थे, हालांकि हालात अब काफी बदल चुके हैं फिर भी जन संख्या विस्फोट और बेरोजगारी व मँहगाई की मार से जनसामान्य त्रस्त है, दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अभी भी भादो की छाया से पूरी तरह उबर नहीं सके हैं | जानकारी के अनुसार अब से लेकर पितृपक्ष ( लगभग सवा महीने तक ) व्यावसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तीज – त्योहार अथवा अन्य मांगलिक तिथियों के न होने के कारण कारोबारी गतिविधियाँ काफी हद तक प्रभावित रहेंगी, तो दूसरी ओर क्षेत्र में सिलसिलेवार हो रही बरसात के कारण भवन निर्माण सहित दूसरे संरचनात्मक कार्यों के ठप्प चल रहे होने से दिहाड़ी मजदूर भी खस्तेहाली से दो – चार हैं,
बैंक से कर्ज लेकर छोटा – मोटा कारोबार करने वाले कई कारोबारियों रामू, परमेसर, नखड़ू, बरसाती तथा परानू आदि ने बताया कि, भादो के महीने व लगातार बारिश के चलते दुकानदारी का काम बहुत ढीला चल रहा है लिहाजा परिवार का खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में वे कर्ज की किस्तों का भुगतान कैसे करें, इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं, खासकर तब जब वसूली के लिए बैंककर्मी बेहद सख्ती बरतने लगे हों,