तापमान की मार
*जौनपुर।* जिले में बढ़ता तापमान सेहत के लिए भी बेहद खतरनाक है। पारा 42 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचते ही दिल और दिमाग के अलावा आंत, किडनी, फेफड़ों, लिवर और पैंक्रियाज की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। इसके चलते मरीज की जान का जोखिम बढ़ जाता है। शुगर के रोगियों को ज्यादा खतरा है। गर्मी को लेकर हाहाकार मच गया है। लोग पंखे और कूलर भी नहीं सो पा रहे है उनमें बेचैनी छा जा रही है, निकल कर रात में बाहर भाग रहे है। बिजली कटौती कोढ़ में खाज साबित हो रही है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने एक रिपोर्ट के अनुसार तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस अगर लगातार बना रहता है तो हृदय रोगियों की मौत के मामले 2.6 फीसदी तक बढ़ सकते हैं। मानव शरीर का सामान्य तापमान 36.4 डिग्री सेल्सियस से 37.2 डिग्री के बीच होता है, लेकिन जब बाहरी तापमान इससे ज्यादा होता है तो स्वास्थ्य पर संकट पैदा होने लगता है। हालांकि, वयस्कों की तुलना में बच्चों में इसका प्रभाव कम होता है। राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत भीषण गर्मी की लहर से इन्सानों को होने वाली 27 तरह की क्षति की पहचान की गई है। बताया गया कि अभी तक गर्मी की वजह से चक्कर आना, बेहोशी या फिर आंखों में जलन महसूस करने जैसी परेशानियों के बारे में जानते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान पर बीमार व्यक्ति की नसों में खून के थक्के जमना शुरू होता है। छोटी नसों में खून के छोटे-छोटे थक्के बनने की यह प्रक्रिया सबसे पहले दिमाग और फिर आंतों के अलावा किडनी, लिवर और फेफड़ों को प्रभावित करने लगती है। अत्यधिक गर्मी का एक और सबसे गंभीर परिणाम रैब्डोमायोलिसिस है, जिसके तहत मांसपेशियों के ऊतक टूटकर खून में हानिकारक प्रोटीन के रूप में मिलने लगते हैं। सबसे पहले गर्मी का असर इन्सानों के दिमाग पर पड़ता है। इसलिए 27 तरीकों में पहला स्थान मस्तिष्क को दिया है जो सीधे तौर पर गर्मी की चपेट में आने पर स्ट्रोक या फिर हीट स्ट्रेस देता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर हृदय, फिर आंत, किडनी, लिवर और पैंक्रियाज पर असर पड़ता है। जब शरीर का तापमान कोशिका की थर्मल सहनशीलता से अधिक होने लगता है तो ऐसी स्थिति को हीट साइटोटॉक्सिसिटी माना जाता है, जिसकी वजह से पैंक्रियाज को छोड़कर बाकी सभी छह अंगों को नुकसान होने लगता है। ऐसी स्थिति में मरीज की मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। इसी तरह जब तापमान बढ़ने के कारण रक्तचाप बढ़ता है तो पैंक्रियाज पर इसका असर होता है जो शुगर का स्तर बढ़ा देता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बाहरी तापमान जब शरीर के तापमान की तुलना में अधिक होता है तो पसीना आने लगता है। यह सीधे तौर पर रक्तचाप और ह्दय गति को बढ़ाता है। गर्म दिनों में पुरुषों में चोटों के कारण अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम अधिक होता है, जबकि महिलाओं में संक्रामक, हार्मोनल व चयापचय, श्वसन या मूत्र रोगों के कारण अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम ज्यादा होता है। अत्यधिक गर्मी के कारण किसी व्यक्ति के अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ने वाली अन्य स्थितियां गुर्दे की विफलता, पथरी और मूत्र पथ संक्रमण हैं। गर्मी की वजह से यह भी संभव है कि संक्रमण से लड़ने के लिए रक्त में निकलने वाले रसायन पूरे शरीर में सूजन पैदा कर दें। भटकाव या भ्रम, चिड़चिड़ापन, दौरा या कोमा, लाल या शुष्क त्वचा, बहुत तेज सिरदर्द, चक्कर या बेहोशी, मांसपेशियों में ऐंठन, उल्टी और दिल की तेज धड़कन ऐसे संकेत हैं, जिनमें तत्काल इलाज की जरूरत पड़ सकती है।