Saturday, October 26, 2024
चर्चित समाचार

सफलता की कहानी

Top Banner

 

*जवानी में भारत आए थे ये अंग्रेज, फिर यहीं के हो गए*

*खोजे एक से एक … हाथ के कारीगर…..*
*बना दिया अरबों का कारोबार* …..

जॉन बिसेल 2 साल के लिए भारत आए थे. मगर यहां की कारीगरी के ऐसे मुरीद हुए कि उन्होंने अमेरिका लौटना मुनासिब नहीं समझा. उन्होंने एक कंपनी बनाई, जिसकी वैल्यूएशन 16,000 करोड़ से अधिक है.

*मलखान सिंह*

अमेरिका से एक शख्स को 2 साल के लिए भारत भेजा गया. वह दो वर्षों तक भारत में रहा और यहां की कला और कलाकारों से इतना प्रभावित हुआ कि हमेशा के लिए यहीं का होकर रह गया. शादी भी यहीं की और धंधा भी यहीं जमाया. आज उनकी कंपनी का वैल्यूएशन हजारों करोड़ रुपये है. उनकी कंपनी न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी अच्छा रुतबा रखती है. हम बात कर रहे हैं फैबइंडिया बनाने वाले जॉन बिसेल की. कुछ दिन पहले खबर थी कि फैबइंडिया को खरीदने के लिए टाटा-बिरला जैसी नामी कंपनियां प्रयास कर रही हैं. जॉन बिसेल ने कैसे फैब इंडिया को इतना बड़ा बना दिया? चलिए जानते हैं.

दरअसल, वे अमेरिका की बेहद खूबसूरत जगह हार्टफोर्ड में पैदा हुए थे. उनके पिता उन्हें दूसरे विश्व युद्ध के समय अपने भारत में रहने की कहानियां सुनाया करते थे. यहीं से जॉन के मन में भारत के लिए सहानुभूति और प्यार पनपने लगा. उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यूयॉर्क में ही हाथ से बुने हुए फैब्रिक से जुड़ा एक काम पकड़ लिया.

1958 में उन्हें फोर्ड फाउंडेशन की तरफ से 2 साल के लिए भारत भेजा गया. उनका काम था कि वे भारत में ग्रामीणों को एक्सपोर्ट के लिए चीजें बनाने के लिए प्रेरित करें. साथ ही वे अमेरिकी फर्म सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज़ कॉर्पोरेशन के सलाहकार भी थे. वे दो साल तक भारत में रहे और इस दौरान उन्हें भारत से प्यार हो गया. भारतीय कारीगरों से इश्क हो गया. जब लौटने का वक्त आया तो उन्होंने भारत में ही रहना उचित समझा.

*दादी से मिले 95,000 रुपये से की शुरुआत*…

जॉन बिसेल को लगा कि लौटकर अमेरिका जाने से बेहतर है कि भारत में रहकर अपना काम किया जाए. चूंकि वे भारत में बुनकरों की कला से वाकिफ थे, तो उन्होंने अपनी दादी से मिले 95,000 रुपयों से छोटी-सी कंपनी बनाई. 1960 में बनाई गई इस कंपनी का नाम फैब इंडिया लिमिटेड था. शुरुआत घर के दो छोटे से कमरों से हुई. यह कंपनी भारत में स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों को खरीदकर विदेश भेजने का काम करती थी.

*पानीपत में पूरी हुई खोज*…….

वह भारतीय क्राफ्ट को दुनिया के सामने रखना चाहते थे. जॉन बेसिल भारत के कई गांवों में घूमे. वे किसी ऐसे शख्स को खोज रहे थे, जो एकदम सपाट बुनाई कर सके. अंतत: उनकी मुलाकात पानीपत में एक होम फर्निशिंग मैन्युफैक्चरर एएस खेरा से हुई. वे उनके लिए पहले सप्लायर बने.

1965 में जॉन ने होम फर्निंशिंग कंपनी हैबिटैट के साथ नाता जोड़ा और यही कंपनी फैबइंडिया का पहली और बड़ी ग्राहक बनकर उभरी. हैबिटैट को ब्रिटिश डिजाइनर टैरेंस कोनरैन ने शुरू किया था. हैबिटैट भारत में बनी चीजों को फैबइंडिया से खरीदती थी. इसी कंपनी से मजबूत नाते की बदौलत फैबइंडिया आगे बढ़ी और एक बड़ी कंपनी में तब्दील होने लगी.

*इमरजेंसी ने बदल दिया सबकुछ*….

1965 में ही फैबइंडिया का रेवेन्यू 20 लाख रुपये हो गया था. सबकुछ ठीक चल रहा था, मगर 1975 में देश में लगी इमरजेंसी ने सबकुछ बदल दिया. एक नियम बना कि कोई भी कमर्शियल कंपनी घर से बिजनेस नहीं कर सकती. ऐसे में जॉन बिसेल को कुछ नया और अलग करने की जरूरत आन पड़ी. मुसीबत के समय एक अच्छे बिजनेसमैन का दिमाग हर उस दिशा में दौड़ता है, जो कंपनी के लिए बेहतर हो. तो अभी तक केवल एक्सपोर्ट पर ध्यान लगा रहे जॉन बिसेल ने 1976 में पहली बार रिटेल में कदम रखा और दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में फैबइंडिया का पहला आउटलेट खोला.

दूसरा आउटलेट भी दिल्ली में ही 1994 में खुला. इसी के साथ कंपनी की सेल 12 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. इसके बाद वो साल आया, जब जॉन बिसेल इस दुनिया को अलविदा कह गए. 1998 में ( 66 वर्ष की आयु में ) उनका निधन हो गया. जॉन बिसेल द्वारा शुरू किया गया यज्ञ अभी तक जारी है और दुनिया भारतीय हैंडक्राफ्ट की झलक फैबइंडिया में देखती है. उनकी विरासत को आगे ले जाने का काम उनके बेटे विलियम नंदा बिसेल अच्छे से कर रहे हैं. बता दें कि जॉन बिसेल की पत्नी का नाम बिमला नंदा था. यही वजह है कि उनके बेटे का नाम विलियम नंदा बिसेल है.

*बेटे की अगुवाई में यूं बढ़ी कंपनी*….

2006 आते-आते फैबइंडिया ने उत्पादों की नॉन-टैक्सटाइल रेंज भी बाजार में उतार दी. इसमें ऑर्गेनिक फूड से लेकर पर्सनल केयर और हाथ से बनी ज्वैलरी तक शामिल हैं. उपलब्धि ऐसी है कि यह शत-प्रतिशत शुद्ध इंडियन आर्ट ब्रांड बन गया. 21 राज्यों के 22,000 से अधिक आर्टिस्ट कंपनी के साथ जुड़े गए. 2007 में कंपनी ने 200 करोड़ रुपये का रेवेन्यू भी पार कर लिया.

इसी बीच एक चिंता उठी कि बुनकरों को प्रॉफिट का केवल 5 प्रतिशत मार्जिन मिल रहा था. ऐसे में कंपनी ने एक नया प्रोग्राम लॉन्च किया, जिसके तहत प्रॉडक्ट बनाने वाले कारीगर ही क्षेत्रिय कंपनियों में शेयर खरीद लें और फिर जो प्रॉफिट होगा, उसमें हिस्सेदारी लें. इसके अलावा यदि खराब क्वालिटी की वजह से कोई प्रॉडक्ट सप्लायर से वापस आता है तो उसकी जिम्मेदारी भी लें, ताकि गुणवत्ता बरकरार रहे. कारीगरों को यह आइडिया भा गया और कंपनी का प्रॉफिट बढ़ा.

*अजीम प्रेजमी से मिले 110 करोड़*……

इस प्रोग्राम के बाद फैबइंडिया 18 क्षेत्रिय कंपनियों तक फैल गया. 40,000 कारीगार जुड़ गए, और 196 स्टोर खुल गए. 1500 करोड़ के वैल्यूएशन पर प्रेमजी इनवेस्ट की तरफ से कंपनी को 110 करोड़ रुपये का निवेश भी मिल गया. निवेश मतलब पंख. कंपनी ने उड़ान भरी और सिंगापुर, भूटान, इटली, नेपाल, मलेशिया और मॉरीशस तक पहुंच बना ली. 2016 आते-आते कंपनी की वर्थ 5,397 करोड़ रुपये की हो चुकी थी.

आज कंपनी की वर्थ 16,000 करोड़ रुपये के आसपास है. 55,000 कारीगर इससे जुड़े हुए हैं और 400 से अधिक स्टोर संचालित होते हैं. कंपनी का रेवेन्यू लगभग 1,700 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. यही वजह है कि इसमें देश की नामी कंपनियां निवेश करने को उत्सुक नजर आती हैं. हालांकि इससे संबंधित कोई ठोस खबर अभी तक नहीं आई है.