हम पूजा के हित थाल सजाते फूलों का,वे अपने हाथों अपने शीश चढ़ाते हैं
देते प्राणों का दान देश के हित शहीद,पूजा की सच्ची विधि वे ही अपनाते हैं
हम पूजा के हित थाल सजाते फूलों का,वे अपने हाथों अपने शीश चढ़ाते हैं
जो हैं शहीद सम्मान देश का होते वे,उत्प्रेरक उनसे होती कई पीढ़ियां है।
उनकी यादें साधारण यादें नहीं कभी,यश गौरव की मंजिल के लिए सीढ़ियां है।।
कर्तव्य राष्ट्र का होता आया यह पावन,अपने शहीद वीरों का वह जयगान करे।
सम्मान देश को दिया जिन्होंने जीवन दे,उनकी यादों का राष्ट्र सदा सम्मान करे।।
जो देश पूजता अपने अमर शहीदों को,वह देश विश्व में ऊंचा आदर पाता है।
वह देश हमेशा ही धिक्कारा जाता जो,अपने शहीद वीरों की याद भूलाता है।।
प्राणों को हमने सदा अकिंचन समझा है,सब कुछ समझा हमने धरती की माटी को।
जिससे स्वदेश का गौरव उठे और ऊंचा,जीवित रख्खा हमने उस हर परपाटी को।।
चुपचाप दे गए प्राण देश-धरती के हित,हैं हुए यहां ऐसे भी अगणित बलिदानी।
कब खिले, झड़े कब कोई जान नहीं पाया,उन वन-फूलों की महक न हमने पहचानी।।
यह तथ्य बहुत आवश्यक है हम सबको ही,सोचें,खाना पीना ही नहीं जिंदगी है।
हम जिएं देश के लिए देश के लिए मरें,बंदगी वतन की हो,वह सही बंदगी है।।
क्या बात करें उनकी जो अपने लिए जिए,वे हैं प्रणम्य जो देश-धरा के लिए मरे।
वे नहीं,मरी केवल उनकी भौतिकता ही,सदियों के सूखेपन में भी वे हरे-भरे।।
वे हैं शहीद,लगता वे जैसे यहीं कहीं,यादों में हरदम कौंध-कौंध जाते हैं वे।
जब कभी हमारे कदम भटकने लगते हैं,तो सही रास्ता हमको दिखलाते हैं वे।।
हमको अभीष्ट,यदि बलिदानी फिर पैदा हो,बलिदान हुए जो उनको नहीं भुलाएं हम।
सर देने वालों की पंक्तियां खड़ी होंगी,उनकी यादें सांसो पर अगर झुलाएं हम।।
जीवन शहीद का व्यर्थ नहीं जाया करता,मर रहे राष्ट्र को वह जीवन दे जाता है।
जो किसी शत्रु के लिए प्रबल बन सकता है,वह जन-जन को ऐसा यौवन दे जाता है।।
श्री कृष्ण सरल