Wednesday, October 23, 2024
कविता

मातृभूमि के साथ-साथ हर मैले मन को साफ करो

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 रवि यादव “प्रीतम

एकजुट होकर निकले हो जब बाहर अपने घर से
अमर स्वच्छता की इच्छा उभरी है उर अन्दर से
दुर्गन्धित इस अपने पर्यावरण पवन को साफ करो
मातृभूमि के साथ-साथ हर मैले मन को साफ करो

जन्नत जैसा सुन्दर कर दो गांव गली गलियारों को
फिर पवित्रता सौंप दो लहरों नदियों और किनारों को
झूठे,जुमले बाजों से रक्षित रख्खो दरबारों को
क्रांति का हथियार बनाओं भाषण कविता नारों को
अपने लाल किले को अपने संसद भवन को साफ करो
मातृभूमि के साथ-साथ हर मैले मन को साफ करो

साफ करो सामाजिक दुष्परिणामित सभी प्रथाओं को
साफ करो आतंकवादियों से अपनी सीमाओं को
साफ करो एकजुट होकर के असल अराजक तत्वों को
साफ करो इस अमन वृक्ष की काली टहनी पत्तों को
साफ करो दूषित मलीन निज आमदनी के जरिए को
साफ करो सब सभी प्राणियों के प्रति स्वत्व नजरिये को
ऊंच-नीच का भेद मिटा कर जन जीवन को साफ करो
मातृभूमि के साथ-साथ हर मैले मन को साफ करो

साफ करो अब सभी मजहबी हर निर्दयी फ़सादो को
साफ करो धर्मों के प्रति के सब नापाक इरादों को
साफ करो सम्बन्धों में बढ़ती दिन दिन इस दूरी को
साफ करो मानवता के पैरों में पड़ी मजबूरी को
गले लगाकर अपनों को धूमिल बन्धन को साफ करो
मातृभूमि के साथ-साथ हर मैले मन को साफ करो