घाटे बहुत हैं चाहतों के रोज़गार में
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पड़ता नहीं हूँ सोच के ये बात प्यार में I
घाटे बहुत हैं चाहतों के रोज़गार में II
हाथों में ईश के है ज़माने की बागडोर I
कुछ भी नहीं है आदमी के इख़्तियार में II
है देश का भविष्य इसी पर टिका हुआ I
मत बेचिएगा वोट को सौ या हज़ार में II
आएँगे जाने ज़िन्दगी में कब वो अच्छे दिन I
पलकें बिछाए जिनके खड़े इंतज़ार में II
तुम और कुछ बढ़ा के बिगाड़ोगे क्या मेरा I
यूँ भी खड़े हैं दर्द हज़ारों क़तार में II
चर्चे तेरी जफ़ाओं के सुनकर भी ज़िन्दगी I
हर्गिज़ कमी न आई मेरे ऐतबार में II
*हीरा* दबा-दबा के ये रखते हो किसलिए I
दिल का गुबार बहने दो अश्क़ों की धार में II