ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
दिन-रात आँसुओं में नहाया करे कोई
इतना किसी को याद न आया करे कोई
पहले ग़रल के घूँट पिलाया करे कोई
फिर नाज़ रक़ीबों के उठाया करे कोई
कमियों पे अपने डालने के बाद ही नज़र
औरों की ग़लतियों को गिनाया करे कोई
ख़ुशियों के साथ होगा ग़मों का भी आगमन
ये सोच कर ही दिल को लगाया करे कोई
साकार उनको करने का जज़्बा भी मन में हो
सपनों से तब ही हाथ मिलाया करे कोई
रख कर के मन में चाँद सितारों की आरज़ू
ख़ुद दायरा दुखों का बढ़ाया करे कोई
हीरा न हो वो सुनने को राज़ी तो किस तरह
नाराज़ ज़िन्दगी को मनाया करे कोई