कैसे बाल दिवस अब भाए ?
बचपन जिनका सिसक रहा,उन्हें देख आँसू भर आए
भूखे- प्यासे बच्चे रोएँ ,कैसे बाल दिवस अब भाए।
मिलता नहीं दूध है जिनको,तड़प रहे हैं ऐसे बच्चे
कैसे ये फल- फूल सकेंगे,जो हैं मन के सीधे- सच्चे
जीवन इनके लिए बोझ है,कैसे होगा इनका पोषण
आज कुटिल लोगों के कारण,हमने देखा इनका शोषण
तरह- तरह के रोग लग रहे,इन्हें दवा अब कौन दिलाए
अस्पताल सरकारी हैं जो,क्या इलाज सचमुच कर पाए।
कोई दूध- मलाई खाता,कोई रोटी को भी तरसे
कोई पहने यहाँ चीथड़े,और कहीं पर दौलत बरसे
नन्हें-मुंहों की दुनिया में,कोई ऊँचा- कोई नीचा
कोई सोता है मखमल पर,कोई पाता फटा गलीचा
स्कूलों में हुई धाँधली,उन पर कौन लगाम लगाए
सरकारी स्तर पर शिक्षक,अपनी किस्मत को चमकाए।
कई चले अभियान यहाँ पर,हुई सर्व शिक्षा भी कैसी
कागज पर चल रहे आँकड़े ,नहीं रही वह ऐसी- वैसी
छोटे बच्चे हमने देखे,मजदूरी कर समय बिताते
कोई बर्तन साफ कर रहा,कोई देखा जूठन खाते
मन की बात हमें कहनी है,कब तक बैठें हम गम खाए
बच्चे भविष्य है भारत के,नेताओं को कौन समझाए ?
लेखक
राहुल सिंह ओज