कलयुग में साक्षात धरा के रघुराई थे बापू जी
रवि यादव “प्रीतम” गर्त गुलामी को आजादी की आशा देने वाले। सत्य अहिंसा सदाचार को परिभाषा देने वाले।। सच पूछो
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Read Moreरवि यादव “प्रीतम एकजुट होकर निकले हो जब बाहर अपने घर से अमर स्वच्छता की इच्छा उभरी है उर अन्दर
Read Moreशंकर शैलेन्द्र अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। ये सुबह-ओ-शाम के रँगे हुए गगन को चूमकर तू
Read Moreशिवमंगल सिंह सुमन घर-आँगन सब आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन दर-दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन। तन जलता है,
Read Moreशिवमंगल सिंह “सुमन” हम दीवानों का क्या परिचय? कुछ चाव लिए, कुछ चाह लिए कुछ कसकन और कराह लिए
Read Moreरवि यादव “प्रीतम” कहो कलम! जय “दिनकर” की होती मोती-मणियों से तुलना जिनके स्वर्ण अक्षर की कहो कलम!
Read Moreरवि यादव”प्रीतम” हिंदी भाषा हिंद देश की हिंदी का गुणगान करो रहो अमेरिका रूस जहां भी हिंदी का उत्थान करो
Read Moreजनकवि कैलाश गौतम बाबू आन्हर माई आन्हर हमै छोड़ सब भाई आन्हर के-के, के-के दिया देखाई बिजुली अस भउजाई आन्हर॥
Read Moreदेवी जी कहने लगीं, कर घूँघट की आड़ हमको दिखलाए नहीं, तुमने कभी पहाड़ तुमने कभी पहाड़, हाय तकदीर हमारी इससे
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