Friday, November 22, 2024

कविता

कविता

राष्ट्र में विधर्मियों की शक्तियों के स्वर बढ़े , तो शत्रुओं पर शस्त्र का संधान कविता है मेरी।।

अखंडता की अस्मिता को शत्रु छेड़ते हो जब, तो एकता के जागरण का गान कविता है मेरी। राष्ट्र की समुन्नति

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