मैरिज नोटिस प्रकाशित करना कपल की निजता का उल्लंघन” : लॉ स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिकता को दी चुनौती
एक कानून की छात्रा ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष एक रिट याचिका दायर की है। इन प्रावधानों के अनुसार, विवाह अधिकारी को अधिनियम के तहत शादी करने के इच्छुक जोड़ों द्वारा प्रस्तुत मैरिज नोटिस की प्रतियां प्रकाशित करने की आवश्यकता होती है। नंदिनी प्रवीण का कहना है कि ये प्रावधान अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) का उल्लंघन करते हैं।विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह आमतौर पर अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले जोड़ों द्वारा किया जाता है। अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि जो जोड़े इस अधिनियम के तहत विवाह करने का इरादा रखते हैं, उन्हें उस जिले के विवाह अधिकारी को निर्दिष्ट रूप में लिखित नोटिस देना होगा, जिसमें विवाह करने वाले जोड़े में से कम से कम एक पक्ष ने तीस दिनों की अवधि के लिए निवास किया हो। यह तीस दिन की अवधि उस तारीख से पहले की होनी चाहिए,जिस तारीख को इस तरह का नोटिस दिया जाता है।धारा 6 के अनुसार, विवाह अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्यालय के रिकॉर्ड में इस तरह के सभी नोटिस को रखे और मैरिज नोटिस बुक में इस तरह के हर नोटिस की एक मूल प्रति दर्ज करें। यह रिकार्ड उचित समय पर, बिना शुल्क के, निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहेंगे और ऐसा करने का इच्छुक व्यक्ति इनका निरीक्षण कर पाएगा। विवाह कार्यालय से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्यालय में किसी विशिष्ट स्थान पर ऐसे सभी नोटिस की एक प्रति चिपका कर प्रकाशित करेगा।यदि दोनों पक्षों में से कोई एक पक्ष स्थायी रूप से विवाह अधिकारी के जिले की स्थानीय सीमा के भीतर नहीं रहता है, तो वह ऐसे नोटिस की एक प्रति उस जिले के विवाह अधिकारी को प्रेषित करेगा, जिसकी सीमा में ऐसा पक्ष स्थायी रूप से निवास कर रहा है, जिसके बाद उस जिले का विवाह अधिकारी भी अपने कार्यालय में किसी विशिष्ट स्थान इस नोटिस की एक प्रति को चिपका कर प्रकाशित करेगा। कोई भी व्यक्ति इस तरह के नोटिस के प्रकाशन के बाद तीस दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले शादी के खिलाफ आपत्ति उठा सकता है। विवाह अधिकारी, इन आपत्तियों पर विचार करने के बाद, उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं या उन्हें स्वीकार कर सकते है।पुत्तुस्वामी के फैसले पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने वाले जोड़ों को उनका विवरण प्रकाशित करने की आवश्यकता होती है। जबकि हिंदू विवाह अधिनियम और इस्लामी कानून के तहत शादी करने वाले जोड़ों के लिए यह आवश्यकता नहीं बनाई गई है। इस तरह यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इसलिए विवाह के इच्छुक जोड़े की निजी जानकारी का प्रकाशन करने से उनकी व्यक्तिगत निजता का उल्लंघन होता है और यह ऐसा विवाह करने के इच्छुक पक्षों के जीवन में दखलअंदाजी के समान है। याचिकाकर्ता ने नवतेज सिंह जौहर के फैसले में की गई टिप्पणियों का हवाला देते हुए कहा कि इन प्रावधानों का अंतरजातीय जोड़ों पर असमान प्रभाव पड़ता है, और अधिनियम द्वारा लगाए गए अवरोधों के कारण जोड़ों की मौलिक पसंद के पहलू का उल्लंघन होता है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने कहा कि व्यक्तिगत विवरणों के प्रकाशन से अक्सर शादी करने के अधिकार पर एक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने ‘प्रणव कुमार मिश्रा बनाम दिल्ली सरकार’ मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा जताया। इस फैसले में कहा गया था कि ”दो वयस्कों द्वारा विवाह करने के लिए बनाई गई योजना का अनौपचारिक प्रकटीकरण,कुछ विशेष स्थितियों में विवाह को ही खतरे में डाल देता है। कुछ मामलों में, यह एक पक्ष के माता-पिता के हस्तक्षेप के कारण दूसरे पक्ष के जीवन को भी खतरे में ड़ाल सकता है।” इस मामले में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड निशे राजेन शोंकर और एडवोकेट कालेश्वरम राज याचिकाकर्ता के वकील हैं। केरल सरकार ने बंद कर दिया है स्कैन मैरिज नोटिस को अपलोड करना पंजीकरण विभाग की वेबसाइट में प्रकाशित ‘मैरिज नोटिस’ में निहित व्यक्तिगत जानकारी के दुरुपयोग की शिकायते मिलने बाद, केरल सरकार ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि उप रजिस्ट्रार को सौंपी गई ‘नोटिस आॅफ इंटेन्डिड मैरिज’ की स्कैन प्रतियां अपलोड करने की प्रथा पर रोक लगाई जाए।