Friday, November 22, 2024
देश

वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा (विनोद दुआ राजद्रोह केस) ‘प्रेस की आजादी के बिना लोकतंत्र खतरे मेंं होगा’

Top Banner

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पत्रकार विनोद दुआ की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलों पर सुनवाई की। विनोद दुआ ने एक याचिका दायर कर उसके खिलाफ राजद्रोह, सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि के आरोपों के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। यह एफआईआर दुआ की कुछ यूट्यूब वीडियो के संबंध में दर्ज की गई थी। सिंह ने जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरीन की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि आईपीसी की धारा 124 ए, 153 ए और 505 (2) के तहत अपराधों के लिए आवश्यक सामग्री तत्काल मामले के दायरे में नहीं आती।

‘दुआ द्वारा संचालित कार्यक्रम में वास्तव में जो कहा गया था,एफआईआर में उसके विपरीत सब तरोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। मैंने जो कहा है वह निश्चित रूप से एफआईआर में नहीं है। हालांकि मामले के तथ्यों के आधार पर यह न तो राजद्रोह है और न ही दुश्मनी, घृणा पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान है।” इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने ‘केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य’ और ‘बलवंत सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य’ मामले का हवाला दिया।

इसके बाद, सिंह ने तर्क दिया कि यदि आरोपी ने किसी धर्म, नस्लीय या भाषाई या क्षेत्रीय समूह या समुदाय के खिलाफ कुछ भी नहीं किया है तो उसे आईपीसी की धारा 153ए के तहत या धारा 505 (2) के तहत अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अन्य प्रार्थनाओं के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। कहा गया है कि दस साल तक मीडिया से संबंध रखने वाले व्यक्तियों के खिलाफ तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए जब तक कि हर राज्य सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा इसके लिए मंजूरी न मिल जाए। सिंह ने संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकार विधेयक और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) (क) के बीच की काॅरलेरी का भी वर्णन किया।

सिंह-”यूएसए ने नागरिकों और प्रेस का उल्लेख किया है.. 19 (1) (ए) में प्रेस का उल्लेख नहीं है। इसके पीछे विचार यह है कि सभी नागरिकों के साथ-साथ प्रेस को भी बोलने की आजादी है। प्रेस की आजादी की अनुपस्थिति लोकतंत्र के लिए खतरा है। यदि प्रेस को बोलने की आजादी की विशेष रूप से गारंटी नहीं दी जाएगी- तो हमारे देश में सब चीजें पतनशीलता की तरफ मुड़ जाएंगी।” सिंह ने आज के लिए अपनी दलीलें समाप्त कर दी हैं। अब इस मामले में दो सितम्बर को अगली सुनवाई होगी। मामले की पृष्ठभूमि 7 जुलाई को शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया था कि वह पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में चल रही जाँच के संबंध में एक सप्ताह के भीतर आवश्यक विवरण के साथ एक सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट दायर करें। पीठ ने उक्त तिथि को मौखिक रूप से यह भी कहा था कि एक बार जांच का ब्यौरा अदालत के समक्ष रख दिया दिया जाए। उसके बाद यदि अदालत पत्रकार की दलीलों से संतुष्ट होगी तो उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को ”सीधे तौर ” पर रद्द कर दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि ,”अगर हम इस बात से संतुष्ट होंगे कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया विवाद सही है, तो हम सीधे एफआईआर को खत्म कर देंगे।” जिसके बाद मामले की सुनवाई 15 जुलाई के लिए टाल दी गई थी। वही 14 जून को गिरफ्तारी के संबंध में दी गई अंतरिम सुरक्षा को मामले की सुनवाई की अगली तारीख तक बढ़ा दिया गया था। दुआ के खिलाफ कई राज्यों से एफआईआर दर्ज की गई हैं। जिनमें पिछले दिनों ही महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में दर्ज प्राथमिकी भी शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश स्थित शिमला में दुआ के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।जिसके बाद शिमला पुलिस ने दुआ को समन जारी किया था। शिमला में भारतीय जनता पार्टी के नेता अजय श्याम ने दुआ पर राजद्रोह के आरोप लगाते हुए शिकायत दायर की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह दुआ की तरफ से पेश हुए थे और कहा था कि उनके मुवक्किल को फ्रीडम ऑफ स्पीच के संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए परेशान किया जा रहा है। 14 जून को बेंच द्वारा निम्नलिखित निर्देश पारित किए गए थे- (ए) अगले आदेश तक याचिकाकर्ता को वर्तमान अपराध के संबंध में गिरफ्तार न किया जाए (बी) हालाँकि, याचिकाकर्ता द्वारा 12 जून 2020 को भेजे गए संचार में किए गए वादों के अनुसार उसको वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या ऑनलाइन मोड के माध्यम से पूर्ण सहयोग करना होगा। (सी) हिमाचल प्रदेश पुलिस अपनी जांच जारी रख सकती है। वहीं 24 घंटे की पूर्व सूचना देकर व COVID19 महामारी के दौरान निर्धारित सोशल डिस्टेंसिंग मानदंडों का अनुपालन करते हुए याचिकाकर्ता से उसके निवास स्थान पर पूछताछ करने की भी हकदार होगी। इसके बाद पीठ ने दुआ की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह द्वारा दी गई तीखी दलीलों के बावजूद भी जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। सिंह ने कहा था कि एफआईआर सरकार के प्रति अरूचिकर विचारों को प्रसारित करने के चलते किए जा रहे ”उत्पीड़न” का नतीजा है। साथ ही कहा था कि ”अगर दुआ ने जो कहा है वो देशद्रोह है, तो देश में केवल दो चैनल ही काम कर सकते हैं।” पूर्व में दिल्ली हाईकोर्ट ने दुआ के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी पर रोक लगा दी थी,जिसमें दुआ पर आरोप लगाया गया था कि उसने अपने यूट्यूब शो के माध्यम से फरवरी माह में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर एक फर्जी खबर प्रसारित की थी। दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश के दो दिन बाद शिमला पुलिस ने दुआ को समन भेज दिया था। शिमला में दर्ज एफआईआर भी शो से संबंधित है।