कुछ नहीं कीमत सरों की, आपकी सरकार में
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अनुपिन्द्र सिंह अनुप
कुछ नहीं कीमत सरों की आपकी सरकार में,
सरकटे ही सरकटे आते नज़र दरबार में ।
कुछ नया होता नहीं है अब हमारे देश में,
रोज़ ख़बरें तुम नई क्यों ढूँढते अख़बार में ।
धार अपनी से करे ज़ख़्मी महक जो फूल की,
ज़ोर इतना हो नहीं सकता किसी तलवार में।
बन गई है जो दिलों में अब हमारे दोस्तो,
छेद करना है ज़रूरी अब उसी दीवार में ।
चाहते हो तुम अगर नज़दीक आयें तितलियां,
फूल जैसी कुछ महक पैदा करो किरदार में।
फिर दवा भी हार अपनी मान लेगी एक दिन,
ठीक होने की अगर चाहत नहीं बीमार में ।
क्या नहीं तुम जानते,बिकते यहां बस कहकहे,
आंसूओं को बेचने क्यों ? आ गये बाजार में।