धरती मां ने कहा एक दिन वैज्ञानिक पुत्रों से
धरती मां ने कहा एक दिन वैज्ञानिक पुत्रों से।
तुमने बड़े कमाल किए हैं पता चला सूत्रों से।।
मिल-जुल क्या एक काम मेरा भी करोगे मेरे नंदन?।
भेज दो राखी तुम मामा तक अब के रक्षाबंधन।।
समझ गए वैज्ञानिक अपने धरती मां की इच्छा।
कमर कस लिए देने को सबके सब अग्नि परीक्षा।।
बोल उठे संकल्प हैं मां ये लेते तेरे नंदन।
पहुंच के तेरी रहेगी राखी अब के रक्षाबंधन।।
मां के मन के सपने को साकार बनाने खातिर।
मां से मामा के घर तक त्यौहार मनाने खातिर।।
तन-मन से जुट गए जुटाने में सब एक सवारी।
हुई भेजने की राखी कुछ दिन में सब तैयारी।।
हुआ सफर आगाज जुलाई में चौदह तारीख को।
लगभग चालीस दिन में राखी पहुंचेगी मां लिख लो।।
अंगुली पर गिन गिन कर एक-एक दिन मां लगी बिताने।
क्या होगा मेरी राखी का अब तो राम ही जाने।।
वैज्ञानिक पुत्रों ने दृष्टि रख्खी अपलक होकर।
कहीं गलत ना जाने पाए मां की राखी खोकर।।
मां के मुखमंडल की बढ़ने लगी मृदुल मुस्कान।
यह क्या ! मामा के ही घर पर उतर चंद्र विमान।।
दौड़ गई एक लहर खुशी की जन-जन की धड़कन में।
फूट पड़ी धरती मां पुत्रों को भर आलिंगन में।।
पता था मुझको ऊंचा फिर से मेरा भाल करोगे।
वादा करो कमाल यूं ही पुत्रों हर साल करोगे।।
रवि यादव