Saturday, March 15, 2025
हीरा का पन्ना

गजल

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हीरालाल यादव हीरा

शरमा के जो दिलबर की ज़ुबाँ बोल रही है
मिसरी सी वो कानों में मेरे घोल रही है

इक दिन ये उमीदों का फ़लक छू के रहेगी
आशाओं की चिड़िया अभी पर खोल रही है

धोखे का दुशाला है कहाँ ओढ़ लिया ये
आँखों में तुम्हारी जो नमी डोल रही है

चेहरे पे लगाये हुए चेहरे जो हैं फिरते
खुल उनकी ज़माने में अभी पोल रही है

बिक जाऊँगा लगता है तुझे जान के डर से
दुनिया तू मेरा आँक ही कम मोल रही है

सच्चाई जो हीरा है तू औरों में तलाशे
किरदार से ख़ुद तेरे वही गोल रही है

 

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