Monday, December 23, 2024
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*बिस्तर पर थे जॉर्ज फर्नांडीज, अस्पताल के रूम में मिले अटल-आडवाणी*

*ऐसे शुरू हुई थी नीतीश से बीजेपी के गठबंधन की कहानी*

*मोहम्मद साकिब मज़ीद*

साल 1994 का दौर था…लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक-दूसरे से जुदा हो चुके थे. जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश ने मिलकर ‘समता पार्टी’ का गठन कर लिया था. अगले ही साल बिहार का विधानसभा चुनाव होना था. दोनों नेताओं ने सूबे के कोने-कोने में जाकर जनता से मुलाकात की. हर जनसभा के बाद जॉर्ज अपना दामन फैलाकर लोगों से मिलने वाला पांच-दस रुपये का चंदा कुबूल कर लेते थे.

साल 1995 का विधानसभा चुनाव हुआ और सामने आए नतीजों से समता पार्टी को जोरदार झटका लगा. कुल 310 प्रत्याशियों में से सिर्फ सात की जीत हो सकी. इसके कुछ दिन बाद जॉर्ज फर्नांडिस की तबीयत खराब हो गई और उनको मुंबई के एक हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया.

*जब जॉर्ज फर्नांडिस से मिलने पहुंचे नीतीश कुमार*

अपने नेता जॉर्ज के खराब स्वास्थ्य की खबर सुनते ही नीतीश कुमार उनका हाल-चाल जानने मुंबई के हॉस्पिटल पहुंच गए.

नीतीश कुमार के खास दोस्त और लेखक उदय कांत अपनी किताब ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में लिखते हैं कि अस्पताल पहुंचने पर नीतीश ने देखा कि वहां पर लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी पहले से मौजूद थे. इन दोनों नेताओं से जॉर्ज का रिश्ता काफी अच्छा था. मुंबई में अगले ही दिन भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा सम्मेलन होने वाला था.

इसी किताब में आगे नीतीश कुमार बताते हैं कि मुलाकात होने के बाद जॉर्ज साहब ने उन्हें कहा कि आडवाणी को अस्पताल के बाहर नीचे तक छोड़कर आ जाएं.

नीतीश कुमार का आडवाणी को छोड़ने जाना ही, इस कहानी में एक नया मोड़ बन गया. नीतीश बताते हैं कि नीचे छोड़ने जाने पर आडवाणी ने मुझे बीजेपी की पब्लिक मीटिंग में शामिल होने का निमंत्रण दिया और मैं जब ये बात वापस आकर जॉर्ज फर्नांडिस को बताया, तो उन्होंने कहा कि मीटिंग में शामिल होने जरूर जाना चाहिए.

*मुंबई की वो ऐतिहासिक जनसभा*

नीतीश कुमार अपने अंदाज में मुंबई में हुई बीजेपी की जनसभा में शामिल हुए. उन्हें यहां पर अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के बीच पूरे सम्मान के साथ बैठाया गया. इस जनसभा में नीतीश ने भी जनता को संबोधित किया और खूब तालियां बटोरीं. वापस जाकर उन्होंने जॉर्ज को सारी बातें बताईं और इसके बाद नीतीश कुमार ने पहला गठबंधन कर लिया.

समता पार्टी के दोनों बड़े नेताओं- नीतीश और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ हुई अटल-आडवाणी की मुलाकात के बाद ही अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि ये गठबंधन हो सकता है.

*कैसा रहा गठबंधन का नतीजा?*

समता पार्टी और बीजेपी का गठबंधन बेहद सफल साबित हुआ. इसने लालू प्रसाद यादव की जमी कुर्सी हिला कर रख दी. साल 1996 का लोकसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने मिलकर लड़ा. अटल और नीतीश ने साथ में मिलकर सूबे के अंदर प्रचार किया. इस चुनाव में बीजेपी को 18, समता पार्टी को 6 और लालू की पार्टी को 22 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई, 1996 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली लेकिन बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उन्हें 13वें दिन ही प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.

*दस महीने के लिए अगला प्रधानमंत्री*

वाजपेयी के इस्तीफे के बाद 1 जून, 1996 को जनता दल के नेता एचडी देवगौड़ा ने संयुक्त मोर्चा गठबंधन का सहारा लेकर अपनी सरकार का गठन किया और प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और अगले दस महीने के लिए पद पर रहे.

यहां गौर करने वाली बात ये है कि देवगौड़ा का कार्यकाल साल भर से भी कम रहा लेकिन उन्होंने 1996 में ही जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से चले आ रहे राज्यपाल शासन को हटाकर वहां पर चुनाव करवाए. देवगौड़ा सरकार को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था, लेकिन देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के 10 महीने बाद ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई.

*इंद्र कुमार गुजराल से गुलजार हुई पीएम की कुर्सी*

देवगौड़ा की सरकार गिरने के बाद अगले प्रधानमंत्री के लिए नए नामों पर चर्चाएं होने लगीं. गुजराल को पीएम बनाने की बात उठी तो कुछ लोगों ने असहमति भी जताई थी, इनमें से एक शख्स मुलायम सिंह भी थे, जो चाहते थे कि गुजराल को प्रधानमंत्री ना बनाया जाए लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी भी गुजराल को पसंद करते थे. आखिरकार गठबंधन में शामिल पार्टियों की मीटिंग में इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया. गौर करने वाली बात यह थी कि इस मीटिंग के वक्त गुजराल अपने घर पर सो रहे थे. गठबंधन के नेताओं ने पीएम पद के लिए गुजराल का नाम तय करने के बाद उनके घर पहुंचे और जगाकर बोले- ‘उठिए, अब आपको प्रधानमंत्री बनना है.’

इसके बाद 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुजराल ने देश के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. करीब 11 महीनों के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर अपना समर्थन वापस ले लिया और मार्च 1998 में गुजराल सरकार गिर गई.

*एक बार फिर अटल सरकार*……

15 मार्च 1998 को राष्ट्रपति केआर नारायण ने बहुमत वाले गठबंधन के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया. 272 सांसदों के समर्थन से 19 मार्च को वाजपेयी के नेतृत्व में 41 पार्टियों ने मिलकर एनडीए की सरकार बनाई. इस सरकार को तेलुगुदेशम, शिवसेना, अकाली दल, समता पर्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एआईएडीएमके और बीजू जनता दल जैसे कई क्षेत्रीय दलों का सपोर्ट मिला. इस सरकार में नीतीश कुमार को रेलमंत्री बनाया गया था.

सरकार बनने के बाद एनडीए की सहयोगी एआईएडीएमके की प्रमुख जयललिता ने उनके खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को वापस लेने और डीएमके के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी पर दबाव बनाया लेकिन वो नहीं झुके. इसका नतीजा यह हुआ कि संसद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत के दौरान एक वोट से हार गई. इस दौरान जयललिता की पार्टी ने बीजेपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था.

साल 1999 में 13 दलों के गठबंधन के साथ अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. पीएम पद की शपथ उन्होंने 13 अक्टूबर, 1999 को ली थी. इस बार उनकी सरकार ने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.