गजल
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जब तेरी आंखों में आंसू थे रवा रूकसर पर
बिजलियां सी गिर रहीथी इस दिले बीमार पर
सरहदे खतरे मे थी जन गुलुस्ताने हिंद की
हस्ते हस्ते चढ़ गए थे हम फराजे द्वार पर
ऐ विदेशी याद है वो दस्ताने गम मुझको
थे मेरे बच्चो के सर जब खंजरों के धार पर
पहले भी सीचा था हमने खून से इस सरजमी को
आज भी न आने देंगे हम गुलजार को